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गृहेऽन्नमात्रदौर्लभ्यं, लभ्यन्ते मौदका व्रते । वैराग्यस्यायमर्थो हि दुःखगर्भस्य लक्षणम् ॥७॥
भावार्थ : घर में खाने को पर्याप्त अन्न भी नहीं मिलता है और दीक्षा लेने के बाद खाने को रोज लड्डू मिलते हैं, तो फिर दीक्षा में दुःख ही क्या है ? इस प्रकार के वैराग्यभास भावों से जो दीक्षा लेता है, वह दुःख - गर्भित वैराग्य का लक्षण है ॥७॥ कुशास्त्राभ्याससम्भूतं भवनैर्गुण्यदर्शनात् । मोहगर्भं तु वैराग्यं मतं बालतपस्विनाम् ॥८ ॥
भावार्थ : कुशास्त्रों के अध्ययन से संसार की निःसारता=निर्गुणता जानने (देखने) से जो वैराग्य होता है, वह मोहगर्भित वैराग्य होता है । ऐसा वैराग्य बालतपस्वियों को होता है ॥८॥ सिद्धान्तमुपजीव्यापि ये विरुद्धार्थभाषिणः । तेषामप्येतदेवेष्टं, कुर्वतामपि दुष्करम् ॥९॥
भावार्थ : जो जिनेश्वर के सिद्धान्त का आश्रय लेकर भी अपनी बौद्धिक कल्पना से सिद्धान्त-विरुद्ध प्ररूपण ( उत्सूत्र भाषण ) करते हैं; ऐसे साधक भले ही अतिदुष्कर तप आदि या कठोर क्रियाएँ करते हों, उनका वह वैराग्य मोहगर्भित ही कहलाता है ||९||
संसारमोचकादीनामिवैतेषां न तात्त्विकः ।
शुभोऽपि परिणामो, यज्जाता नाज्ञारुचिस्थितिः ॥१०॥
अधिकार छठा
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