________________
अधिकार छठा
[ वैराग्य-भेद ] तद्वैराग्यं स्मृतं दुःख - मोह - ज्ञानान्वयात् त्रिधा । तत्राद्यं विषयाप्राप्तेः संसारोद्वेगलक्षणम् ॥१॥
भावार्थ : वह वैराग्य तीन प्रकार का होता है - (१) दुःखगर्भित (२) मोहगर्भित और (३) ज्ञानगर्भित । इनमें से प्रथम दुःखगर्भित वैराग्य वह है, जो मनोवांछित विषयों की प्राप्ति न होने से संसार के प्रति उद्विग्नता (विरक्ति) से होता है ॥ १ ॥ अत्राङ्गमनसोः खेदो ज्ञानमाप्यायकं न यत् । निजाभीप्सितलाभे च विनिपातोऽपि जायते ॥२॥
भावार्थ : इस दुःखगर्भित वैराग्य में कारण है - शरीर और मन का खेद । इसमें तृप्ति करने वाला ज्ञान होता ही नहीं है। यदि उसे इष्ट वस्तु मिल जाए तो उसका वैराग्य नष्ट भी हो जाता है ॥२॥
दुःखाद्विरक्ताः प्रागेवेच्छन्ति प्रत्यागतेः पदं । अधीरा इव संग्रामे प्रविशन्तो वनादिकम् ॥३॥
भावार्थ : दुःख से घबड़ा कर साधुवेश धारण करने वाले साधक पहले से ही वापस गृहस्थाश्रम में आने की इच्छा कर
अधिकार छठा
५५