________________
नहीं करता । जैसे कोई जीव परजन का आश्रय लेने पर भी परजन नहीं होता, वह स्वजन कहलाता है, वैसे ही ज्ञानी कर्ममय नहीं होता ॥२५॥ अतएव महापुण्यविपाकोपहितश्रियाम् । गर्भादारभ्य वैराग्यं नोत्तमानां विहन्यते ॥२६॥
भावार्थ : इसलिए महान् पुण्य-विपाक के योग से मोक्ष-लक्ष्मी जिनके निकट हो गई है। उन उत्तम पुरुषों का
वैराग्य गर्भ से लेकर नष्ट नहीं होता है ॥२६।। विषयेभ्यः प्रशान्तानामश्रान्तं विमुखीकृतैः । करणैश्चारूवैराग्यमेष राजपथः किल ॥२७॥
भावार्थ : जिसका मन विषयों से उपरत होने से प्रशान्त हो गया है और इन्द्रियों को विषयों से निरन्तर (अविश्रान्त) पराङ्मुख करने के कारण सतत् मनोहर वैराग्य उत्पन्न होता है; यही वैराग्य का राजमार्ग है ॥२७॥ स्वयं निवर्तमानैस्तैरनुदीर्णैरयन्त्रितैः । तृप्तैर्ज्ञानवतां तत्स्यादसावेकपदी मता ॥२८॥
भावार्थ : अपने आप निवृत्ति होने से उदीरणा सहित और नियंत्रण के बिना तृप्त हुई इन्द्रियों से ज्ञानियों को जो वैराग्य होता है, वह वैराग्य एक पगडंडी मानी गई है ॥२८॥ बलेन प्रेर्यमाणानि करणानि वनेभवत् । न जातु वशतां यान्ति प्रत्युतानर्थवृद्धये ॥२९॥
५२
अध्यात्मसार