________________
स्थिरीभूते यस्मिन्विधुकिरणकर्पूरविमला । यशःश्रीः प्रौढा स्याज्जिनसमयतत्त्वस्थितिविदाम् ॥२७॥
भावार्थ : अतः बुद्धिमान लोग कहते हैं कि इस प्रकार संसार के स्वरूप का चिन्तन (ध्यान) करना (शम) समतासुख का कारण है, और यह जगत् को अभयदान देता है; तथा उस ध्यान में स्थिर हो जाने से जिनागमतत्त्वज्ञाता पुरुषों की जगत् में चन्द्रकिरण और कपूर के समान उज्ज्वल यशोलक्ष्मी बढ़ती है ॥२७॥
॥ इति श्रीनय-विजय-गणि-शिष्य-श्रीयशोविजयेन विरचिते अध्यात्म-सारप्रकरण प्रथमः प्रबन्धः ॥४॥
अधिकार चौथा
४३