________________ अभिज्ञानशाकुन्तलम् [प्रथमो शकुन्तला-हला ! परित्ताअध परित्ताअध मं इमिणा दुट्टमहुअरेण अहिहूउमाणम् / [हला ! परित्रायेथां परित्रायेथां मामनेन दुष्टमधुकरेणाऽभिभूयमानाम् / उभे-( सस्मितं-) का अम्हो परित्ताणे ? / एत्थ दाव दुस्सन्दं अक्कन्द, जदो राअरक्खिदाइं तबोवणाई / [ ( सस्मितं) के आवां परित्राणे ? / अत्र तावद्दष्यन्तमाक्रन्द, यतो राजरक्षितानि तपोवनानि / / राजा--अवसरः खल्वयमस्माकमात्मानं दशयितुम् / न भेतव्यं ! नर्तनकाले लोलां दृष्टिम्, इतस्ततो विवर्तमान मध्यं, हस्तचालनञ्च कुरुते इति युक्तमुक्तम् / [ चतुर्थचरणार्थे पादत्रयार्थस्य हेतुत्वाकाव्यलिङ्गमत्र / भ्रूलतापल्लवनिमपदयोरुपमा / अत्राऽन्येऽप्यलङ्काराः सन्ति, ते तद्रसिकैराकलनीयाः]।२६।। अनेन मामनुसरता, दुष्टेन = पापिना, मधुकरेण = भ्रमरण, अभिभूयमानां = पीड्यमानां, परित्रायेथां= युवां रक्षतम् / सस्मितमिति / मनाक् पीडितां शकुन्तला प्रेक्ष्य स्मितमत्र / आक्रन्द = आह्वय / 'आक्रन्दः क्रन्दनाऽऽह्वाने' इति मेदिनी / स्वगतमिति / 'अश्राव्यं खलु यद्वस्तु तदिह स्वगत मत मिति विश्वनाथः / आत्मानं दर्शयितुम् = साथ ही सीत्कार आदि भी करती है। अतः भ्रमर के भय से यह बाला (शकुन्तला) नर्तकी की तरह मानों नाच रही है / केवल वाद्य (बाजे) की ही यहाँ कमी है / अर्थात् नाचते समय नर्तकी के साथ तो बाजे भी रहते हैं, पर इसके पास केवल बाजे नहीं हैं, बस, नत्तैकी में और इसमें इतना ही अन्तर है // 26 // - शकुन्तला-अरी सखियों ! मैं इस दुष्ट भ्रमर से पीडित हो रही हूँ। तुम मुझे बचाओ। ' दोनों सखियाँ-(हँसती हुई-) हम बचाने वाली कौन होती हैं / दुष्यन्त राजा को बुला, वही तुझे बचायेगा। क्योंकि तपोवन की रक्षा का भार तो राजा पर ही होता है / राजा-हमारे प्रकट होने का यह अच्छा अवसर है / 'मत डरो, मत डरो,'।