________________ 316 अभिज्ञानशाकुन्तलम् [पञ्चमो AANAANANA * भवन्ति नमास्तरवः फेलोइमै नवाम्बुभिर्दरविलम्बिनो घनाः। अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः, स्वभाव एवैष परोपकारिणाम् // 13 // प्रतीहारी–देव ! २पसण्णमुहा इसीओ दीसन्ति / . कुत एतदत आह-भवन्तीति / फलोद्गमैः = फलोद्भवैः / पाठान्तरेफलानामागमैः-फलागमैः = फलानां समन्तात्याप्तिभिः / एतेन फलप्रसवसमृद्धिपराकाष्ठा सूचिता / नम्राः = अधोमुखाः, विनीताश्च-भवन्ति / किञ्च-धनाः = मेघाः / नवैरम्बुभिः = अभिनवैर्जलैः / जलसम्पदतिरेकेऽपि / दूरं विलम्बन्ते तच्छीला:-दूरविलम्बिनः = नितरां प्रवर्षणशीलाः, नम्राश्च भवन्ति / किञ्चसत्पुरुषाः = साधवोऽपि / समृद्धिभिः = सम्पदतिशयेन / अनुद्धताः= विनीता एव भवन्ति / एषः = नम्रत्वाऽनुद्धतत्वादिरूपः / परोपकारिणां = परोपकारपरायणानां दुष्यन्तसदृशानां / स्वभाव एव = निसर्ग एव / किन्तत्राऽस्माकं प्रशंसापरम्पराभिरित्याशयः / [अर्थान्तरन्यास-मालाप्रतिवस्तूपमा-ऽप्रस्तुतप्रशंसा-ऽतिशयोक्ति-काव्यलिङ्गा-ऽनुप्रासालङ्काराणां सङ्करः / 'वंशस्थं वृत्तम्' ] // 13 // ___ फल आने से वृक्ष स्वभाव से ही नम्र हो जाते हैं। और जल से भरे रहने पर नवीन मेघ भी स्वतः बहुत नीचे झुक ( लटक ) जाते हैं, नम्र हो जाते हैं। इसी प्रकार समृद्धि ( राज्य वैभव एवं धन-सम्पत्ति आदि ) प्राप्त कर सज्जन लोग भी-अनुद्धत, नम्र और विनीत हो जाते हैं, यह परोपकारियों का स्वभाव ही है / अतः परोपकारी यह राजा यदि इस प्रकार नम्र और विनयी है, तो इसमें आश्चर्य की बात ही क्या है ? / यह तो इनका स्वाभाविक गुण ही है / इसके लिए इनकी प्रशंसा करना व्यर्थ ही है // 13 // प्रतीहारी–महाराज ! ऋएि तो प्रसन्नमुख मालूम होते हैं / अतः किसी प्रकार की आशङ्का की बात तो नहीं मालूम होती है / अर्थात् अपने. किसी कष्ट को कहने ये नहीं आए हैं-ऐसा मालूम होता है। 1 'फलागमैः'। 2 'प्रसन्नमुखवर्णा दृश्यन्ते / जाने विस्रब्धकार्या ऋषयः' पा० /