Book Title: Abhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Author(s): Mahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
Publisher: Bhargav Pustakalay
View full book text
________________ अभिज्ञानशाकुन्तलम् आद्ये वः कुसुमप्रसूतिसमये यस्या भवत्युत्सवः, सेयं याति शकुन्तला पतिगृहं, सर्वैरनुज्ञायताम् // 9 // * (कोकिलावं सूचयित्वा-) अनुमतगमना शकुन्तला, तरुभिरियं बनधासबन्धुभिः / परभृतविरुतं कलं यथा प्रतिवचनीकृसमेभिरीरशम् // 10 // ( आकाशे-) रम्यान्तरः कमलिनीहरितैः सरोभि श्छायाद्रुमैनियमिताऽर्कमयूखतापः / भूयात्कुशेशयरजोमृदुरेणुरस्याः, शान्तानुकूलपवनश्च, शिवश्व पन्थाः // 11 // (सर्व-सविस्मयमाकर्णयन्ति ) / गौतमी-जादे ! ण्णाद्विजणसिमिछाहिं अणुगावगमवासि तवोवणदेवदाहिं / पणम भवदीणं / [जाते ! ज्ञातिजनस्निग्धाभिरनुज्ञातगमनाऽसि तोवनदेवताभिः / प्रणम भगवतीः] / शकुन्तला-(सप्रणामं परिक्रम्य, 'जनान्तिकम् - ) हला पिवदे! गं अज्ञउत्तदसणुस्सुआए वि अस्समपदं परिचअन्तीए दुक्खेण मे चलणा पुरदो पवन्ति / [ हला प्रियंवदे ! नन्वार्यपुत्रदर्शनोत्सुकाया अप्याश्रमपदं परित्यजन्त्या दुःखेन मे चरणौ पुरतः प्रवर्तेते !] / प्रियंवदा- केवलं तवोवणविरहकादरा सही एज्व, तुए उवविविओअस्स तवोवणस्स वि दाव समवस्था दीसह / [ न केवलं तपोवनविरहकातरा सख्येव, वयोपस्थित्रियोगस्य लपोनस्यापि . तोवत्समवस्था दृश्यते। 1 'रुतं'। २'आत्मनः' पा०। 3 'समावस्था'।
Page Navigation
1 ... 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640