________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटोका-विराजितम् 435 राजा-ततः किम् ? / चेटी—'तं मे हत्थादो पिङ्गिलिआवेदिआए देवीए वसुमदीए–'अहं ज्जेव अज्जउत्तस्स उबणइसं'त्ति भणि सबलकारं गहीदं / ['तन्मे हस्तात् पिङ्गलिकाऽऽवेदितया देव्या वसुमत्या-'अहमेवाऽऽयं पुत्रस्योपनेष्यामीति भणित्वा सबलात्कारं गृहीतम् ] / विदूषकः-तुमं कधं विमुक्का ? / [त्व कथं विमुक्ता ?] / चेटी-जाव देवीए लदाविडपलग्गं उत्तरीअञ्चलं पिङ्गलिआ मोआवेदि दाव णिहुँदो मए अप्पा। [ यावद्देव्या लताविटपलग्नमुत्तरीयाऽञ्चलं पिङ्गलिका मोचति, तावन्निद्भुतो मयाऽऽत्मा / दिशि / पिङ्गलिकया = तन्नाम्न्या चेटिकया। आवेदितया = 'वर्तिकाकरण्डकमेषा राज्ञः समीपे नयतीति विज्ञापितया / सबलात्कारं = हठात् / कथं विमुक्ता = त्वं कुतो न दण्डितेति प्रश्नाशयः। विटपः = शाखा; विस्तारः / 'बिस्तारो विटपोऽस्त्रिया'मित्यमरः / लग्नं = सक्तम् / उत्तरीयस्याञ्चलम् = उत्तरीय राजा-हाँ, तो-फिर क्या हुआ ?, कहो / : चतुरिका-पिङ्गलिका के सिखाने से देवी ( महारानी) वसुमती जी ने 'मैं ही इसे महाराज के पास पहुँचा दूँगो' ऐसा कहकर वह वत्तिका और रंगों का डिब्बा मेरे हाथ से जबरदस्ती छीन लिया / विदूषक-पर उन्होंने तेरे को राजी-खुशी कैसे छोड़ दिया ? / अर्थात् तेरे को पीटा और बान्धा कैसे नहीं। चतुरिका-लता व वृक्ष की शाखा में फंसे हुए महारानी साहिबा के उत्तरीय (दुपट्टे) के अञ्चल ( छोर ) को जब तक वह पिङ्गलिका छुड़ाने लगी, तब तक मैं वहाँ से भाग कर कहीं छिप गई। इसीलिए महारानी जी मुझे मार पीट व पकड़ नहीं सकीं।