________________ ऽङ्कः] . अभिनवराजलक्ष्मो-भाषाटीका-विराजितम् 441 प्रतीहारी-~-( प्रतिनिवृत्य-) ऐसा ह्मि / . [(प्रतिनिवृत्त्य-) एषाऽस्मि / राजा--किमनेन 'सन्ततिरस्ति नास्तीति ? / 'येन येन वियुज्यन्ते प्रजाः स्निग्धेन बन्धुना / स स पापाहते, तासां दुष्यन्त' इति-घुष्यताम् // 26 // किञ्चिच्छ्रत्वा पश्चाद्गन्तव्यम् / सन्ततिरस्ति नास्तीति विचारेण-किं 1 = न किमपि प्रयोजनम् / तदा किं कार्यमित्यत आह-येनेति / येन येन स्निग्धेन = येन येन प्रियेण / बन्धुना = पितृभ्रातृपुत्रादिना / प्रजाः-वियुज्यन्ते = विरहिता भवन्ति / पापाहते = पापसम्बन्धं विहाय / स्त्रीणां पतित्वं, पुंसां भार्यात्वं च विहाय / तासां = प्रजानां / स सः= यस्य पिता नास्ति = मृतः, तस्य दुष्यन्त एव पिता / भ्रातृविगमे च दुष्यन्त एव भ्राता / पुत्रविगमे च दुष्यन्त एव पुत्र इत्येवमेव / घुष्यतां = प्रजायां घोषणा क्रियताम् / यस्याः पतिर्मृतस्तस्यास्तु नाहं पतिरिति-'पापाहते' इत्यनेन सूचितम् / [ अनुप्रासः ] // 26 // प्रतीहारी–( वापिस लौटकर ) महाराज ! यह मैं उपस्थित हूँ। (क्या आज्ञा है ?) / राजा-और देखो, "किसी के सन्तान है, या नहीं है। इस विचार की भी कोई आवश्यकता नहीं है / अमात्य पिशुन से कहो कि___ 'मेरी प्रजा में जिसका जो भी प्रिय बन्धु-बान्धव चला जाए, उसके लिए मैं दुष्यन्त ही उसके प्रिय बन्धु-बान्धव की जगह हूँ, पर केवल पाप सबन्ध को छोड़ कर / अर्थात्-यदि किसी स्त्री का पति चला जाएगा, तो मैं उसका पति नहीं हो सकता हूँ, क्योंकि यह तो पाप सम्बन्ध हुआ, किन्तु यदि किसी का पुत्र या पिता या भाई आदि चला जाए, तो मैं ही उसके पुत्र या पिता या भाई की तरह हूँ / अतः किसी को किसी प्रकार की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है' यह घोषणा राज्य भर में करा दें // 26 //