________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मोभाषाटोकाविराजितम् 499 (प्रकाशम्- ) अथ सा तत्रभवतो किमाख्यस्य राजर्षेः पत्नो / तापसो-को तस्स धम्मदारपरिच्चाइणो णाम कोत्तहस्सदि ? / [कस्तस्य धम्मेदारपरित्यागिनो नाम कीत्तयिष्यति ? 11 राजा- (स्वगतम्-) कथमियं कथा मामेव लक्ष्यीकरोति ! / यावदस्य शिशोर्मातरं नामतः पृच्छामि / ( विचिन्त्य- ) अथवा-अनार्यः खलु परदारपृच्छाव्यापारः / . (प्रविश्य मृन्मयूरहस्ता तापसी-) तापमी-सम्बदमण ! पेक्ख सउन्त--लावणं / / [ सर्वदमन ! प्रेक्षस्व 'शकुन्त-लावण्यं' ('शकुन्तला-वर्णम्')]। सम्बन्धतया / तत्रभवती = एतन्माता / किम्-आख्या यस्य तस्य किमाख्यस्य = किंनाम्नः / धर्मदारान् परित्यजति तच्छीलस्य तस्य-धर्मदारपरित्यागिनः = स्वधर्मपत्नीपरित्यागपरस्य / सङ्कीर्तयितुम् = उच्चारयितुमपि / इयं कथा = एतद्वालकविषयिणी कथा / नामतः = नाम्ना / किं नामाऽस्या मातुरिति पृच्छामीत्यर्थः / अथवा = यद्वा / अनार्यः = अनुचितः। परदाराणां पृच्छा एव व्यवहारः = परपत्नीनामादिजिज्ञासाव्यवहारः / विबोधो नामाऽत्र सन्ध्यङ्गं। शकुन्तस्य = पक्षिणो मृन्मयूरस्य, लावण्यं = दूसरी बात-अप्सरा की पुत्री से इसका उत्पन्न होना है ! / अतः कहीं यह मेरी प्रिया शकुन्तला से उत्पन्न तो नहीं है ?) / (प्रकट में-) तो इसकी माननीया माता किस राजर्षि की पत्नी है ? . तापसी-अपनी धर्मपत्नी को त्यागने वाले उस (पापी) राजा का नाम भला कोन लेना चाहेगा ? / राजा-(मन ही मन ) मालूम होता है-यह कथा तो मेरे को ही लक्ष्य करती है!। यह क्या बात है। अच्छा ! इसकी माता का नाम पूछता हूँ ! ( कुछ सोचकर ) अथवा-पर स्त्री के नाम आदि का पूछना तो भले मनुष्यों का काम नहीं है। [मिट्टी के बने मोर को लेकर तापसी का प्रवेश / - तापसी-हे सर्वदमन | इस शकुन्त (पक्षी) का लावण्य-सौन्दर्य देख / [या शकुन्तला के वर्ण-रूप को देख / इस शब्द के ये दोनों ही अर्थ होते हैं / 1 कचिन्न /