________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 517 मातलि:-अथ किम् / राजा-(प्रणिपत्य-) उभाभ्यामपि वां वासवनियोज्यो दुष्यन्तः प्रणमति / , मारीचः-वत्स ! चिरं जीवन् पृथिवीं पालय / अदितिः-अप्पदिरधो होहि / [अप्रतिरथो भव। (शकुन्तला-पुत्रसहिता पादयोः पतति)। मारीच:-वत्से ! आखण्डलसमो भर्ता, जयन्तप्रतिमः सुतः। आशीरन्या न ते योग्यो, पौलोमीमङ्गला भव // 28 // मरीचि-सम्भवं = दक्षमरीचिजातं / दक्षमगंचिभ्यां क्रमशोऽदितिकाश्यपयोरुत्पत्तेः / द्वन्द्वमिदं = मिथुनमिदं पुरतो विभाव्यते किमिति प्रश्नः / अथ किम् = ओम् / ( हां ) / [मालोदात्तम् / अर्थावृत्तिः / शार्दूलविक्रीडितम् ] // 27 // ___उभाभ्याम् = अदिति कश्यपाभ्यां / वासवस्य = इन्द्रस्य / नियोज्यः = प्रेष्यः / अप्रतिरथः = भुवनैकवीरः / जितशत्रुर्वा / आखण्डलेति / इन्द्रसमः = शक्रतुल्यः। भर्ता = पतिः। दुष्यन्तः। अस्त्येव / जिसके पुत्र हैं और भगवान् पुरुषोत्तम वामन भी जिनके यहाँ आकर पुत्र रूप से उत्पन्न हुए हैं, वही स्त्री पुरुष की आदि जोड़ो ( अदिति और कश्यप ) यह है क्या ? // 27 // मातलि-हाँ, विश्ववन्द्य, तथा देवताओं के माता पिता ये ही दोनों हैं। . राजा-(साष्टाङ्ग प्रणाम करके ) आप दानों को इन्द्र का आज्ञाकारी सेवक दुप्यन्त प्रणाम करना है। मारीच-हे पुत्र ! तुम दीर्घजीवी हो, और चिरकाल तक पृथिवो का पालन करो। अदिति-संसार में तुम बेजोड़ वीर और योद्धा हो / [शकुन्तला-अपने पत्र के साथ उनके पैरों में गिरकर प्रणाम करती है / मारीच-हे पुत्रि! इन्द्र के समान यह तेरा पति है, और इन्द्र के पुत्र जयन्त के ही समान 1 'योज्या'।