Book Title: Abhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Author(s): Mahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
Publisher: Bhargav Pustakalay

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Page 544
________________ 540. दाक्षिणात्यपाठानुसारि- [प्रथमो (सर्वा-राजानं दृष्ट्वा किञ्चिदिव संभ्रान्ताः)। . अनसूया-अज्ज ! ण क्खु किंवि अच्चा हदं। इअंणो पिअसही महुअरेण अहिहूअमाणा कादरीभूदा / ( - इति शकुन्तलां दर्शयति ) / [ आर्य ! न खलु किमप्यत्याहितम् / इयं नौ प्रियसखी मधुकरेणाभिभूयमाना कातरीभूता]। राजा-(शकुन्तलाभिमुखो भूत्वा-) अपि तपो वर्द्धते ? / (शकुन्तला-साध्वसादवचना तिष्ठति ) / अनसूया-दाणिं अदिहिविसेसलाहेण / हला सउन्दले ! गच्छ उड। फलमिस्सं अग्धं उवहर / इदं पादोदअं भविस्सदि। / इदानीमतिथिविशेषलाभेन / हला शकुन्तले ! गच्छोटजम् / फलमिश्रमर्घमुपहर / इदं पादोदकं भविष्यति / . राजा-भवतीनां सूनृतयैव गिरा कृतमातिथ्यम् / . प्रियंवदा-तेण हि इमस्सि दाव पच्छाअसीअलाए सत्तवण्णवेदिआए मुहुत्तों उवविसिअ परिस्समविणोदं करेदु अजो।. [ तेन ह्यस्यां तावत् प्रच्छायशीतलायां सप्तपर्णवेदिकायां मुहूर्तमुपविश्य, परिश्रमविनोदं करोत्वार्यः]। . राजा-नूनं यूयमप्यनेन कर्मणा परिश्रान्ताः / अनसूया-हला सउन्तले ! उइदं णो पज्जुवासणं अदिहीणं। एस्थ उवविसम्ह / ( -इति सर्वा उपविशन्ति)। [हला शकुन्तले ! उचितं नः पर्युपासनमतिथीनाम् / अत्रोपविशामः ] / शकुन्तला-(आत्मगतम्-) किं णु क्खु इमं पेक्खिअ तवोवणविरोहिणो विआरस्स गमणीअम्हि संवुत्ता ? / [किं नु खल्विमं प्रेक्ष्य तपोवनविरोधिनो विकारस्य गमनीयाऽस्मि संवृत्ता] / राजा-( सर्वा विलोक्य- ) अहो समवयोरूपरमणीयं भवतीनां सौहार्दम् / प्रियंवदा-( जनान्तिकम्-) अणसूए! को णु क्खु एसो चउरगम्भीराकिदी चउरं पिअं आलबन्तो पहाववन्दो विअ लक्खीअदि / 1 क्वचिन्न /

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