________________ 522 wwwwww अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [सप्तमोमारीचः-वत्स ! अलमात्माऽपराधशङ्कया। संमोहोऽपि त्वय्युपंपन्न एव / श्रूयताम् राजा--अवहितोऽस्मि / मारीचः-यदैवाऽप्सरस्तीर्थावतरणात्प्रत्याख्यानविक्लवां शकुन्तलामादाय दाक्षायणीमुपगता मेनका, तदैव ध्यानादवगतवृत्तान्तोऽस्मि'दुर्वाससः शापादियं तपस्विनी सहधर्मचारिणी त्वया प्रत्यादिष्टा / नान्यथेति / स चाऽङ्गुलीयकदर्शनाऽवसान:-'इति। आत्मनः-अपराधस्य शङ्कया = आशङ्कया / अलं = न प्रयोजनं / संमोहः = भ्रान्तिः, सन्देहो वा। त्वयि अनुपपन्नः =न सम्भाव्यते / तत्कथमेतदत आहश्रयतामिति / 'उपपन्न' इति पाठे-युक्त एव / शापादिहेतुविशेषादित्यर्थः / अप्सरस्तीर्थावतरणात् = अप्सरस्तीर्थपरिसगत् / प्रत्याख्यानेन = निराकरणेन / विक्लवां = विह्वलां / दाक्षायणीम् = अदितिम् / उपगता = प्राप्ता / मेनका = शकुन्तलामाता मेनका / अवगतवृत्तान्तः = ज्ञातवृत्तान्तः। नान्यथा = न वृथैव / स:= शापः / अङ्गुलीयकस्य दर्शनमवसानं यस्यासौ तथा - अङ्गुलीयकदर्शनावधिः / मारीच-हे वत्स ! इसमें ( शकुन्तला को भूलने में ) तुम अपना दोष बिलकुल मत समझो। तुमारा वह मोह ( अज्ञान) तो सहेतुक था। उसका कारण भी सुनो राजा-हे भगवन् ! मैं सावधान हूं। आप कृपया कहिए। . मारीच-तुमारे द्वारा परित्याग की गई इस शकुन्तला को अप्सरा तीर्थ के पास से जब इसकी माता मेनका लेकर यहाँ आई थी, उसी समय ध्यान लगा कर मैंने इस बात को जान लिया था, कि-दुर्वासा के शापके कारण ही अपनी धर्मपत्नी इस शकुन्तला का तुमने प्रत्याख्यान किया है। और वह शाप अपनी नामाङ्कित अंगठी के देखने तक ही है। अंगठी के देखने के बाद वह शाप अपने आप निवृत्त हो जाएगा। १'त्वयि नाऽनुपपन्नः' पा०।