________________ 526 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [सप्तमोराजा--भगवत्कृतसंस्कारेसर्वमस्मिन् वयमाशास्महे / अदितिः-इमाए दुहिदिमणोरहसम्पत्तीए कण्णो दाव सुदविष्यारो करीअदु / दुहिदिवच्छला मेणआ उण इह में परिअरन्ती सणिहिदा ज्जेव / [ अनया दुहितमनोरथसम्पत्त्या कण्वस्तावच्छृतविस्तारः क्रियताम् / दुहितृवत्सला मेनका पुनरिह मां परिचरन्ती संनिहितैव] / शकुन्तला--(आत्मगत-) मणोगदं मे वाहरिदं भअवदीए। [( आत्मगतं- ) मनोगतं मे व्याहृतं भगवत्या]। प्लक्षः, कुशः, क्रौञ्चः, शाल्मलिः, शाक. पुष्करौ' इति सप्तद्वीपाः / इह = आश्रमे च-सर्वेषां दमनात्-सत्त्वानां-जीवानां = पीडनात् / सर्वदमन इत्ययं तव पुत्रः प्रसिद्धः। पुनः लोकस्य भरणात्-पालनाद्भरत इत्याख्यां यास्यति / [प्रसादलक्षणमङ्गमुपन्यस्तं / काव्यलिङ्गानुप्रासौ / 'शिखरिणी वृत्तम्' ] // 33 // आशास्महे = आशंसे / सम्भावयामः / दुहितुर्मनोरथस्य सम्पत्त्या = पुत्रीमनोरथ-सम्पत्त्या / श्रतो विस्तारो येनासौ तथा = ज्ञातवृत्तान्तः / मामुपचरन्ती = मत्सेवां कुर्वती, मत्समीपचारिणी। तया तु श्रत एवैष शुभो वृत्तान्त इत्याशयः। मनोरथः = लेगा, और इसके सामने कोई भी शत्रु नहीं ठहर सकेगा, और यह अद्वितीय वीर होगा / और हमारे इस आश्रम में तो सब जीवों का बलात्कार से दमन करने के कारण इसका 'सर्वदमन' नाम था, आगे यह अपनी प्रजा का अच्छो तरह से भरण = पालन पोषण करने से 'भरत' नाम से विख्यात होगा। ( इसी भरत के नाम से हमारा यह भारतवर्ष प्रसिद्ध हुआ है ) // 33 // राजा-जिसका संस्कार आपके हाथ से हुआ है-उससे (इस बालक से ) मैं इन सभी बातों की आशा करता हूँ। अदिति-अपनी पुत्री के मनोरथों की सिद्धि ( पति प्राप्ति ) की सूचना इसके पिता कण्व को भी देनी चाहिए। और अपनी पुत्री ( शकुन्तला ) में वात्सल्य और प्रेम रखनेवाली यह मेनका तो यहाँ मेरी सेवा करती हुई उपस्थित है ही। शकुन्तला-(मन ही मन ) भगवती ने यह मेरे मन की ही बात कही है / अर्थात् मेरे पिता कण्व को भी इसकी सूचना अवश्य मिलनी चाहिए। 1 'अस्मिन् सर्वमाशासे'। 2 'मनोरथो मे भणितो' /