________________ अभिज्ञानशाकुन्तलम् [षष्ठोऽनेन भवितव्यं / तदन्विष्यतां यदि काचिदापन्नसत्त्वाऽस्य भार्या स्यात् ? / प्रतीहारी–दाणिं ज्जेव साकेदउरस्स सेट्ठिणो दुहिदा णिब्बुत्तपुंसवणा तस्स जाआ सुणीअदि / [इदानीमेव साकेतपुरस्य श्रेष्टिनो दुहिता निवृत्तपुंसवना तस्य जाया श्रूयते]। राजा-'स खलु गर्भः पित्र्यमृक्थमर्हति'-गत्वैवममात्यं ब्रूहि / प्रतीहारी–जं देवो आणवेदि / (-इति प्रस्थिता)। . [ यद्देव आज्ञापयति (- इति प्रस्थिता)] / राजा-एहि तावत् / / भावस्त या = महाधनाढ्यतया / ब्रह्वयः पत्न्यो यस्य-तेन-बहुपत्नीकेन = बहुभार्येण / आपन्नसत्त्वा = गर्भिणी। अन्विष्यतां = निपुणं निरीक्ष्यताम् / साकेतः पुरं (निवास:-) यस्य,-तस्य-साकेतपुरस्य = अयोध्यानिवासिनः / 'स्यात्साकेतोऽयोध्यायाम्' इति हैमः। साकेत पुरस्य = अयोध्याख्यनगरस्य, श्रेष्ठिन इति वा सम्बन्धः / श्रेष्ठिनः = धनिनः। निवृत्तं पुंसवनं यस्याः सा = जातपुंसवनसंस्कारा / तस्य = धन वृद्धः श्रेष्ठिनः / गर्भः = गर्भस्थः पुत्रः / पुंसवनसंस्कारे च कृते पुत्र एव भवतीति भावः / पितुरागतं-पिव्यं = पितृसम्बन्धि / ऋक्थं = धनं / 'रिक्थमृक्थं धनं वसु' इत्यमरः / एहिं तावत् = प्रतिनिवर्तस्व तावत् / भी बड़ी कष्टप्रद होती है। हे वेत्रवति ! यह धनवृद्धि सेठ तो बड़ा धनी था, अतः इसके तो अनेक स्त्रियाँ होंगी, अतः खोज करो, कदाचित् इसकी कोई स्त्री गर्भवती हो। प्रांतहारी-हाँ, महाराज ! अयोध्यावासी सेठ की पुत्री-जो इसकी भार्या है, वह गर्भवती है। और उसका पुंसवन आदि संस्कार भी अभी हुआ है,ऐसा सुना जाता है / ( पुंसवन संस्कार गर्भ के तीसरे या चौथे मास में होता है, और सीमन्त संस्कार छठे आठवें मास में होता है)। राजा-तो ठीक है / वही गर्भ (गर्भस्थ भावी बालक, पुत्र) अपने पिता के इस धन का मालिक होने योग्य है-ऐसा अमात्य पिशुन को जाकर कह दो। प्रतीहारी-जो महाराज की आज्ञा / ( जाने लगती है)। राजा-प्रतीहारि ! सुन, यहाँ आ।