________________ 450 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [षष्ठोराजा-चतुरिके ! गच्छ / मद्वचनादनिषिद्धपरिजनां देवीमुपालभस्व। (चतुरिका-निष्क्रान्ता)। (नेपथ्ये-भूयः स एव शब्दः)। . राजा--परमाऽर्थतो भीतिभिन्नस्वरो ब्राह्मणः ! / कः कोऽत्र भोः / (प्रविश्य-कञ्चुकी-) कञ्चकी-आज्ञापयतु देवः / राजा--निरूप्यतां-'किमेवं माधव्यब्राह्मणः क्रन्दतीति ? / न निषिद्धः परिजनो यया ताम् = अनिवारितस्वपरिजनदास्यादिचापल्यां / देवीं = वसुमतीम् / उपालभस्व = विनिन्द / 'किमितीमाश्चेटिका न निवारिता भवत्या, या इत्थं माधव्यं क्लेशयन्तीति / स एव = 'अब्रह्मण्यम्' ! अब्रह्मण्य' मिति करुणध्वनिः / शब्दः / भूयः = पुनरपि / परमार्थतः = वस्तुतः। भीत्या भिन्नः स्वरो यस्यासौतथा = भीतिकम्पितस्वरः। वस्तुतो भयातुरोमाधव्यो, नोपहासेन क्रन्दति, यतो-नोपहासमात्रैणैवंविधः करुणशब्दो राजा-चतुरिके ! तूं जाकर महारानी को मेरी ओर से-अपनी दासियों को डाट कर नहीं रखने के लिए, तथा उनके द्वारा विदूषक को कष्ट पहुँचाने के लिए-उलाहना दे। / (चतुरिका-जाती है)। नेपथ्य में--फिर वही शब्द-बचाइए' 'बगइए' सुनाई पड़ता है। राजा-यह तो उस ब्राह्मण का वस्तुतः डरसे काँपते हुए का सा शब्द मालूम होता है / अर्थात् माधव्य का सचमुच डरे हुए का सा ही यह शब्द है। वह हँसी नहीं कर रहा है, किन्तु वास्तव में वह डरा हुआ है। . यहाँ पहरे पर बाहर कौन है ? / [कञ्चुकी का-प्रवेश ] / कच्चुकी-महाराज ! आज्ञा करें। राजा-जाकर देखो-माधब्य ब्राह्मण इस प्रकार क्यों चिल्ला रहा है ? / 1 'माघन्यो ब्राह्मणः' पा०।