________________ 439 ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मीभाषाटीकाविराजितम् राजा-इतः पञ्चं दर्शय। . (प्रतोहारी-उपनयति ) / (राजा- वाचयति-) 'विदितमस्तु देवपादानां-'धनवृद्धिर्नाम वणिग् वारिपथोपजीवी नौव्यसनेन विपन्नः / स चाऽनपत्यः। तस्य चाऽनेककोटिसङ्खथं वसु / तदिदानी राजस्वतामापद्यते' इति / श्रुत्वा देवः प्रमाणम्-'इति / ( सविषादम्-) कष्टं खल्वनपत्यता / वेत्रवति ! महाधनतया बहुपत्नीकेनावासिश्रेष्ठिजनादिकार्यम् / प्रत्यक्षीकरोतु = विलोकयतु / उपनयति = अर्पयति / देवपादानां = महाराजस्य / 'पाद'शब्दोऽत्र पूजायाम् / वारिणः पन्थाःवारिपथस्तेनोपजीवति-सः-वारिपथोपजोवी = समुद्रमार्गव्यापारी / पोतवणिक् / नौव्यसनेन = पोतस्य विनाशेन / विपन्नः = मृतः। अनपत्यः = सन्तानविकलः / कोटयः सङ्ख्या यस्य तत्तथा =अनेककोटिपरिमितं / वसु = धनं / राजस्वतां = राजधनत्वं / राजैव तस्याऽधिकारीति निश्चीयतऽस्माभिरिति भावः / देवः प्रमाणमिति / यथा प्रभवे रोचते तथाऽनुमन्यतामित्यर्थः। 'इतरेषां तु वर्णानां सर्वाऽभावे हरेन्नृपः' इति हि मनुः / अनपत्यता- सन्तानराहित्यम् / कष्टं = दुःखप्रदं / महद्धनं यत्यासौ तस्य राजा-इधर ला, मुझे पत्र दिखा। [प्रतीहारी-राजा को पत्र देती है। [राजा-पत्र बाँचता है-]। 'महाराज के चरणों में विदित हो, कि-धनवृद्धि नाम का वैश्य ( सेठ) जो कि समुद्र स्थित द्वीपान्तरों से जहाजों द्वारा माल लाने व ले जाने का व्यापार करता था, वह समुद्र में जहाज के डूब जाने से, परलोक को चला गया है। और उसके कोई सन्तान नहीं है, तथा उसका कोई उत्तराधिकारी भी नहीं है। और उसके पास कई करोड़ रुपयों की सम्पत्ति है। ( कई करोड़ रुपया छोड़कर वह निःसन्तान ही चल बसा है)। अतः उसका वह सब धन उत्तराधिकारी के अभाव में राजा का ही होता है / इस बात को जानकर आगे महाराज मालिक हैं, जो चाहें सो आज्ञा देवें / ' / (बड़े विषाद और शोक से-) हाय ! अनपत्यता ( संन्तान का भभाव)