________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 429 [भोः ! प्रतिषिद्धवामा खल्वेषा जातिः] / राजा -(सकोपम्- ) भो ! न मे शासने तिष्ठसि ? / श्रूयतां तर्हि / सम्प्रति.हि अक्लिष्टबालतरुपल्लवलोभनीयं, पीतं मया सदयमेव रतोत्सवेषु / विम्बाधरं स्पृशंसि चेद् भ्रमर ! प्रियाया ____ स्त्वां कारयामि कमलोदरबन्धनस्थम् // 23 // वारणमपि भ्रमरस्याऽस्य सुखदमेवेति भावः / प्रतिषिद्धा सती वामा = विपरीताऽऽचरणप्रवणा / एषा जातिः = एषा भ्रमरजातिः। यतः प्रतिषिद्धोऽपि न निवर्त्तते इति भावः / शासने = आज्ञायाम् / 'प्रतिषिद्धाऽतिवामे'ति पाठान्तरम् / अक्लिष्टेति / हे भ्रमर ! अक्लष्टः =न केनापि मर्दनादिनोपहतः। बालस्य, बालानां वा = अभिनवानां / तरोः, तरूणां = पादपानां वा-पल्लवाः = किसलयानि, तल्लोभनीयं = सुन्दरं / रतमेवोत्सवस्तेषु = सुरतमहोत्सवेष्वपि / मया-सदयं = सानुकम्पं / पीतम् = आस्वादितं / न निर्दयं मयोपभुक्तम् / प्रियायाः-मम प्रेयस्याः बिम्बाधरं = बिम्बफलसदृशमधरं / स्पृशसि चेत्तदा / कमलस्योदरमेव बन्धनं तत्र उसी काम को करने वाली है। अर्थात्-यह तो मना करने पर भी उसी काम को करने वाली जाति है। अर्थात् तुमारे इस प्रकार मना करने पर भी यह भौंरा शकुन्तला के मुखकमल का पीछा नहीं छोड़ रहा है। और यह उसका पीछा अभी तक भी कर ही रहा है / . राजा-(कुपित होकर-) हे भ्रमर ! क्या तूं मेरी आज्ञा को नहीं मानता है / तो सुन / इस समय यदि__ हे भ्रमर ! मेरे द्वारा सुरतोत्सव के समय भी बड़ी ही दया ( मृदुता) से, धीरे 2 (आहिस्ते 2) उपयोग (आस्वादन) किया गया, तथा मेरे सिवाय आजतक अन्य किसी से भी अभुक्तपूर्व, छोटे 2 वृक्षों के कोमल पल्लवों की समान मृदु, मेरी प्रिया के बिम्बाधरका ( अधरोष्ठका ) आस्वादन या स्पर्श तूं करना (काटना) चाहेगा, तो मैं तुझको कमल के उदर के भीतर बन्द कर दूंगा। अर्थात् . 1 'प्रतिषिद्धाऽतिवामा' पा० / 2 'दशसि चेद्' पा० /