________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 351 .यदि यथा वदति क्षितिपस्तथा त्वमसि, किं पुनरुत्कुलया त्वया / अथ तु वेत्सि शुचि व्रतमात्मनः, पतिगृहे तब दास्यमपि क्षमम् // 30 // -तिष्ठ। साधयामो वयम् / यदीति / यदि-क्षितिपः = अयं राजा-यथा वदति = 'नास्माभिः परिणीतेय'मित्यादि यथा भाषते / तथा त्वमसि = तथैव त्वं = स्वैरिणी संवृत्ताऽसि / तदा तु कुलादुद्गता-उत्कुला, तया-उत्कुलया = उच्छृङ्खलया / स्वैरिण्या। कुलटया / त्वया कि = नास्माक किमपि प्रयोजनम् / अथ तु = यदि तु / आत्मनो व्रत = स्वशील। शुचि = अखण्डितं / वेत्सि = जानासि / 'अयमेव मे दुष्यन्तः पति'रिति त्वं जानासि चेदित्याशयः / तर्हि-पतिगृहे = अत्र राजकुले / तव = भवत्याः / दास्यमपि = पत्युः सविधे दासभावेनाऽवस्थानमपि / क्षमम् = उचितम् / अतो माऽस्माननुगच्छ, इहैव ते वास उचित इति भावः / [काव्यलिङ्गम् / अनुपासः / द्रुतविलम्बितं वृत्तम्' ] // 30 // अतः-तिष्ठ-माऽस्माननुसर / साधयामः = गच्छामः / 'प्रायेण ण्यन्तकः साधिर्गमनेऽर्थे प्रयुज्यते' इत्युक्तेः। यदि जैसा यह राजा कहता है, कि - 'मैंने इससे विवाह ही नहीं किया. न यह मेरी स्त्री है, न यह गर्भ ही मेरा है', यदि वैसी ही तूं कुलकलकिनी और भ्रष्टा है, तो कुल की मर्यादा को भङ्ग करने वाली तुझ स्वैरिणी से हमारा अब सम्बन्ध ही क्या है ? / और यदि तूं अपने पातिव्रत्यधर्मको, पवित्रता को ठीक और परिशुद्ध समझती है, और यही तेरा पति है, तो फिर अपने पति के घर में दासी बनकर रहना भी तेरे लिए उचित है / अर्थात्-तूं यदि इसकी स्त्री नहीं है, तैने कहीं और ही पुरुष से सम्बन्ध कर यह गर्भ धारण किया है. तो तेरी ऐसी कुलटा को हम संग ले जा कर भी अब क्या करेंगे / अतः तेरी जहाँ इच्छा हो वहाँ जा / और यदि तूं सच्ची सती साध्वी है, और यही तेरा पति है, तो फिर . अपने पति के घर में दासी बन कर भा तुझे यहीं रहना चाहिए // 30 // अतः तूं यही रह, हम लोग जाते हैं /