________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 375 मानयितव्यः / भवतु / अनयोरेवोद्यानपालिकयोः पार्श्वपरिवर्तिनो भूत्वा तिरस्करिण्या विद्यया प्रच्छन्ना उपलप्स्ये (-इति नाटयेनाऽवतीर्य स्थिता ) / (ततः प्रविशति चूताङ्कुरमालोकयन्ती चेटा, तत्पृष्ठेऽपरा च ) / प्रथमा-कधं उवत्थिदो महुमासो ? / [कथमुपस्थितो मधुमासः !] / विलोक्य प्रत्यहमत्राऽऽगत्य तत्रत्यो वृत्तान्तो वर्णनीयस्त्वयेति तन्निर्बन्धः / पालयितव्यः = परिपालनीयः / अतो न समाधिना विभाक्यामि, किन्तु लोचनाभ्यामेव सर्व पश्यामीत्याशयः / उद्यानपालिकयोः = उपवनरक्षिकयोः / पार्श्ववर्तिनी = निकटस्थिता / तिरस्करिण्या विद्यया = अन्तर्धानविद्यया / उपलप्स्ये = ज्ञास्यामि / अवतीर्य = गगनतलादवतीर्य / स्थिता = चेट्योनिकटे निगूढं स्थिता / चूना. ऽङ्कुरम् = आम्राङ्करं / चेटी = दासी। तत्पृष्ठे = दासीपृष्ठे अपरा = द्वितीयापिचेटी। कथमुपस्थित इति / स्वहृदयाऽऽमन्त्रणमेतत् / मधुमासः = वसन्तमासः। 'चैत्र' इति यावत् / कुत एतज्ज्ञातमत आह - आगे-पीछे की सभी बातें जानने की शक्ति रखती हूं, परन्तु मेरी प्रिय सखी शकुन्तला का 'सब हाल अपनी आंखों से देखकर तुम यहाँ आकर कहना' यह आग्रह भी मुझे मानना उचित है / अच्छा ! इन दोनों उद्यानपालिकाओं के पास में ही उपस्थित रह कर, तिरस्करिणो (अन्तर्धान) विद्या के बल से, इनको दिखलाई न पड़कर, मैं गुप्तरूप से इनको सब बातें सुनती हूँ। [अकाश से वायुयान से उतरने का अभिनय करती हुई दोनों उद्यानपालिकाओं के पास हो आकर छिप कर खड़ी हो जाती है ] / [आम की मञ्जरी को देखती हुई एक चेटी ( दासी) का, तथा उसके पीछे ही पीछे दूसरी चेटी = दासी का भी प्रवेश] / पहिली दासी-(आम के मौर-मञ्जरी को देखकर ) हैं ! क्या मधुमास ) वसन्त मास-वसन्त ऋतु का पहिला महोना चैत्रमास आ गया ! / वसन्त ऋतु में चैत के प्रारम्भ में ही आमों के मारो आ जाती हैं / और चैत में ही वसन्तोत्सव और रतिकाममहोत्सव धुरहो आदि का मेला भी होता है ] /