________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 415 विदूषकः-(विलोक्य-) साहु वअस्स ! साहु / जं--तुए महुरो भट्टिणीए दंसितो भावाणुष्पवेसो / खलदि विअ मे दिट्ठी णिहुदप्पदेसेसु / किं बहुना, सत्ताणुप्पवेससक्काए आलवणकोदूहलं मे जणअदि। [( विलोक्य-) साधु वयस्य ! साधु / यत्त्वया मधुरो भट्टिन्या दर्शितो भावानुप्रवेशः / स्खलतीव मे दृष्टिनिम्नोन्नतै प्रदेशेषु / किं बहुना / पाटलो य ओष्ठस्तेन रुचिरं = पक्कबदरीफलाऽऽरत्त वर्णाधरोष्ठसुन्दरं / 'श्वेतरक्तस्तु पाटलः' इत्यमरः / विभ्रमेण लसन् , प्रकर्षेण उद्भिन्नश्च कान्तिद्रवो यत्र तत्तथा - विलासोदञ्चत्कृष्टलावण्यप्रभाप्रवाहं / मुखं = वदनं / चित्रेऽपि आलपतीव = चित्रस्थमपि अस्मान् माभाषते इव / चित्रेऽपि यस्या एवंविधः सौन्दर्यातिशयो विभाव्यते, तस्या अनिन्द्यमौन्दर्यसारविलामविभ्रमाया हरिणाझ्या वास्तवं सौन्दर्य मया कथं वर्णयितुं शक्यमिति भावः / अतिसुन्दरीयं मया भाग्यविपर्ययात्परित्यक्तेत्याशयः / / उपमा / रूपकम् / उत्प्रेक्षा / 'शार्दूलविक्रीडितं वृतम्' / // 15 // साधु = शोभनं / 'साधु वयस्य साधु' इत्यन्तं भिन्नं वाक्यम् | भट्टिन्याः = स्वामिन्याः। राजपल्याः शकुन्तलायाः। मधुरः = मनोहरः / भावानुप्रवेशः= प्रणयानाचती हुई यह इसकी भ्रलता है / और दांतों के भीतर ही फैले हुए मधुर मुस्कान से निकली दन्त किरणों की (चन्द्रिका) चाँदनी से यह अधरोष्ठ भी व्याप्त (विलिप्त सा) हो रहा है / अर्थात् दन्तप्रभा से अधरोष्ठ इसका प्रकाशमान व. शोभायमान हो रहा है। और लाल 2 पके हुए बेरको तरह पाटल ( कुछ श्वेत व लाल = गुलाबी ) ओष्ठ से रुचिर यह इसका सुन्दर मनोहर मुख है, जो इस चित्र में भी,-हाव भाव कटाक्ष लीला आदि से चमचमाती हुई और बढ़ी हुई कान्ति से, एवं लावण्य के प्रवाह से, मानो बोलना ही चाहता है // 15 // . विदूषक-(चित्र को देखकर ) वाह' मित्र ! वाह ! आपने स्वामिनी शकुन्तला का मधुर और मनोहर भाव (प्रेम, अनुराग) का उत्तम प्रदर्शन इस चित्रं में खूब किया है। मेरी दृष्टि तो इस चित्र में लिखे निम्नोन्नत ( स्तन, मुख 1 'मधुरावस्थानदर्शनीयो भावानुप्रवेशः' पा०। 2 निभृतप्रदेशेषु' /