________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 367 - - 'एषोऽस्माकमीश्वरः पत्रे गृहीत्वा राजशासनमागच्छति / साम्प्रतमेष स्वकुल्यानां मुखं प्रेक्षताम् / अथवा गृध्रशृगालानां बलिर्भवतु] / (पाठान्तरे च्छाया-) [एष नौ स्वामी पत्रहस्तो राजशासनं प्रतीक्ष्येतोमुखो दृश्यते / गृध्रबलिभविष्यसि / शुनो मुखं वा द्रक्ष्यसि]। नागरकः--( प्रविश्य - ) 'सिग्धं 'सिग्धं एवं-'( इत्योक्ते- ) ['शीनं शीघ्रमेनम् -' ( इत्योक्ते-)]। धोवरः-हा हदोसि / ( --इति विषादं नाटयति ) / [हा हतोऽस्मि ( -- इति विषादं नाटयति )] / नागरक:-'मुञ्चध जालोवजीविणं / उवपण्णे से अङ्गुलिअस्स आगमे / अह्म शामिणा जाव कधिदं। . [-- मुञ्चतं जालोपोविनम् / उपपन्नोऽस्याङ्गुलीयकस्याऽऽगमः / अस्मत्स्वामिना यावत्कथितम् ] / .. सूचकः-जहा आणवेदि आवुत्ते / जमवशदि गदुअ पडिणिउत्ते ख्खु एशे / (-इति धीर बन्धनान्मोचयति ) / कुक्कुरभक्ष्यो भविष्यसि / उपपन्नः = सङ्गतः / यमसदनं = कालमुखं / पुनरुजीवित इवायं धीवर इत्याशयः / हाथ में सर्कारी हुक्म का परवाना लिए हुए इधर ही आ रहे हैं। मालूम होता है-या तो बोटी 2 काटकर तेरे को ( या इसको ) गीध एवं चील कौवों को खिलाने का हुक्म हुआ है, या तुझको ( या इसको) कुत्तों से नोचवा कर मारने की आज्ञा हुई है। - नागरक-( आकर) 'इसको जल्दी से, जल्दी से--- --' (इतना आधा ही वाक्य सुनकर-) धीवर-(अपने वध का ही हुक्म समझ कर) हाय ! हाय !! मैं निरपराध मारा गया ! / ( विषाद और शोक का अभिनय करता है)। * ' नागरक-(इस धीवर को)-छोड़ दो'। इसकी कही हुई अंगूठी मिलने की बात बिलकुल सच है-यह हमारे प्रभु ( महाराज ) ने कहा है। सूचक--जो हुक्म सर्कार का / यमराज के घर जाकर ही यह लौटा है /