________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 329 प्रतिहारी-(स्वगतम्-) 'अम्मो ! धम्मावेक्खिदा भट्टियो / ईदिसं णाम सुहोवणदं इत्थीरअणं पेक्खिअ को अण्णो विआरेदि ? / [ (स्वगतम्-) अम्महे ! धर्मापेक्षिता भर्तः। ईदृशं नाम सुखोपनतं स्त्रीरत्नं प्रेक्ष्य कोऽन्यो विचारयति ?] / शाङ्गरवः-भो राजन् ! किमिति जोषमास्यते / . राजा भोस्तपोधनाः ! चिन्तयन्नपि न खलु स्वीकरणमत्रभवत्याः स्मरामि / तत्कथमिमामभिव्यक्तसत्त्वलक्षणामात्मानं क्षेत्रिणं मन्यमानः प्रतिपत्स्ये ? / _ 'अम्मो' इति, 'अम्महे' इतिच हर्षे, आश्चर्य वा / धर्ममपेक्षते तच्छीलस्तस्य भावो धर्मापेक्षिता = धर्मानुरागिता. धर्मप्रवणता / भत्तः = स्वामिनो दुष्यन्तस्य / सुखेनउपनते = प्रातं / जोषमास्यते = तूष्णीं स्थीयते भवता / स्वीकरणं = गान्धर्वविधिनाऽङ्गीकारम् / अत्रभवत्याः = कण्वपुत्र्या अस्याः / किमिति = कुतो हेतोः / अभिव्यक्तं सत्त्वस्य लक्षणे यस्याः सा, तां = स्फुटगर्भचिह्नां तां [ प्रति आत्मानं क्षेत्रिणं मन्यमानः ], भार्यारूप-क्षेत्रमस्यास्तीति क्षेत्री, तं क्षेत्रिणं / गर्भिण्या अस्या अद्य स्वीकारेऽत्यामुत्पन्नः पुत्रो मे क्षेत्रजः स्यान्नौरसः। यस्य पत्न्यामन्यो प्रतीहारी-( मन ही मन-) अहो! हमारे महाराज की धर्मपर कैसी दृढ़ आस्था है ! नहीं तो इस प्रकार स्वयं उपस्थित, ऐसे सुन्दर स्त्रीरत्न को देखकर भला कौन दूसरा मनुष्य इस प्रकार धर्म-अधर्म का विचार कर सकता है ? / शाङ्गरव-हे राजन् ! आप चुपचाप क्यों रह गए ? / / राजा-हे तपस्वियो ! मेरे बहुत विचार करने पर भी, इस श्रीमती के साथ गांधर्व विधि से अपने विवाह की बात तो मुझे स्मरण ही नहीं आ रही है / अतः मैं इस प्रकट गर्भ चिह्नवाली स्त्री को अपनी स्त्री कैसे कह सकता हूँ ? / क्योंकि-इसके गर्भसे जो पुत्र उत्पन्न होगा-वह मेरा औरस पुत्र न होकर क्षेत्रज ( अपनी स्त्री में दूसरे से उत्पादित ) पुत्र ही होगा / अतः मैं ऐसी स्त्री को कैसे रख सकता हूँ ? / दूसरेकी सन्तानको मैं अपनी सन्तान कैसे बना सकता हूँ ? / 1 'अम्मो'। 2 'अहो' / 3 'धर्मापेक्षिणो भर्तारः'। 4 'तपस्विनः' /