________________ vvv 314 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [पञ्चमोपुरोधाः-अत एव भवद्विधा महान्तः / शकुन्तला--(दुर्निमित्तमभिनीय-) अम्मो ! किं मे वामेदरं णअणं विष्फुरदि! [ (दुर्निमित्तमभिनीय-) 'अम्महे ! किं मे वामेतरन्नयनं विस्फुरति ! ] / गौतमी--जादे ! पडिहदं अमङ्गलं, सुहाई दे 'होन्तु / (-इति परिक्रामन्ति)। ऽस्त्यस्य तं-सुखसङ्गिनं = विषयभोगासक्तं / जनम् = इमं पौरलोकम् / अवैमि = जानामि / [ मालोपमा / अनुप्रासः / 'आर्या जातिः' ] // 12 // अनिमित्तम् = अपशकुनम् / 'अम्महे इति निर्वेदे देशी / 'अम्मो' इति क्वचि. साठः / वामेतरत् = दक्षिणं / स्त्रीणां दक्षिणाङ्गनेत्रादिस्फुरणस्याऽमङ्गलसूचकत्वात् / स्वतन्त्र व्यक्ति-कारागार में बन्धे हुए पुरुषों को जैसे देखता है। अर्थात्-हम लोग पवित्र, ज्ञानी और स्वतन्त्र हैं, ये बेचारे अशुद्ध, अज्ञानी, और संसार के मायाजाल में फंसे हुए हैं / / तैल लगाया हुआ मनुष्य तब तक अशुद्ध रहता है, जब तक वह स्नान नहीं कर लेता है ] // 12 // पुरोहित-इसी लिए तो आप लोग-'महात्मा' कहलाते हैं / शकुन्तला-(अशकुन का अभिनय करती हुई-) अरी मैया री ! मेरा यह दाहिना नेत्र आज क्यों फड़क रहा है ? ( स्त्रियों का दहिने नेत्रका फड़कना अशुभ सूचक होता है, और पुरुषों के बाएँ नेत्र का फड़कना अशुभ सूचक होता है)। ___ गौतमी-हे पुत्रि! यह अमङ्गल दूर हो / तेरे को सुख प्राप्त हो / [ तेरे पति के कुल देवता तेरा मङ्गल करें] / ( सब लोग कुछ आगे को चलते हैं ) / 1 'अम्मो' / 2 'सुहाई दे भत्तुकुलदेवदाओ विदरन्दु' [ सुखानि ते भर्तकुलदेवता वितरन्तु ] पा० /