________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 299 द्वितीयः-. नियमयसि विमार्गप्रस्थितानात्तदण्डः, प्रशमयसि विवाद, कल्पसे रक्षणाय / अतनुषु विभवेषु ज्ञातयः सन्तु नाम, त्वयि तु परिसमाप्तं बन्धुकृत्यं जनानाम् // 7 // नियमयसीति / त्वम्-आत्तो दण्डो येनासौ-आत्तदण्डः = गृहीतराजदण्डः सन् / विमार्ग-प्रस्थितान्-विमार्गप्रस्थितान् = भिन्नमर्यादान् / दुष्टान् / नियमयसि = निवारयसि / किञ्च प्रजानां-विवादं = विरोध, कलहं च / प्रशमयसिनिवारयसि / किञ्च-रक्षणाय = जगतां, प्रजानां रक्षणाय / कल्पसे = त्वं समर्थो भवसि / अतनुषु = बहुलेषु / विभवेषु = धनादिषु-सत्सु / ज्ञातयः = बान्धवाः / 'अधिकारिण' इति शेषः / सन्तु = भवन्तु / नामेति संभावनायाम् / 'संविभक्ता' इति पाठान्तरे-संविभक्ताः- अधिकारिणो भवन्तु नामेत्यर्थः / तु = परन्तु / प्रजानां = जनानां / बन्धुकृत्यं = रक्षणादिरूपं बन्धुकृत्यं तु / त्वयि = त्वय्येव / परिसमाप्तं = . परिनिष्ठितं, निष्पन्नम् , आहितं भवति / प्रजासु धनिनां धनस्य बान्धवा धनाधिकारिणो भवन्तु नाम, तासां प्रजानां बन्धुकृत्यं पालनावेक्षणादिकन्तु भवानेव करोतीति . दूसरा वैतालिक (भाट)-महाराज! आप राजदण्ड हाथ में धारण कर के कुमार्ग ( बुरे रास्ते ) पर चलने वाले दुष्टों का नियमन (शासन) करते हैं, प्रजा के झगड़ों को दूर करते हैं, उनका ठीक ठीक निर्णय करते हैं और प्रजा की रक्षा के लिए सदा सन्नद्ध रहते हैं। जिनके पास अधिक धन हैं, ऐसे धनियों के लिए तो उनके बन्धु-बान्धव कदाचित् उनके काम आते हों तो दूसरी बात है, ( या धनियों के धन के अधिकारी मात्र ही बान्धव होते हैं ), परन्तु जनता के बन्धु-बान्धवों का कर्तव्य कार्य-रक्षा, सहायता आदि तो केवल आप ही से होता है / अर्थात् भाई-बन्धु तो पैसे वाले के पैसे लेने के ही साथी होते हैं, पर जनता के सच्चे माता-पिता-भाई-बन्धु तो आप ही हैं, 1 'ज्ञातयः संविभक्ताः' पा० /