________________ 302 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [पञ्चमो mmmm. राजा-तूष्णीम्भव, यावदाकर्णयामि / कञ्चकी-( विलोक्य-) अन्यासक्तो देवः, तदवसरं प्रतिपाल. यामि (-इत्येकान्ते स्थितः)। ('आकाशे-गीयते-) अहिणवमहुलोलुबो भवं, तह परिचुम्बिअ चूअमञ्जरिम् / कमलवसदिमेत्तणिव्वुदो महुअर ! विह्मरिदोसि णं कहं ? // 8 // [ अभिनवमधुलोलुपो भवांस्तथा परिचुम्ब्य चूतमञ्जरीम् / कमलवसतिमात्रनिवृतो मधुकर ! विस्मृतोऽस्येनां कथम् ? ] // 8 // गीताऽभ्यासे प्रथमतो वर्णपरिचो हि-सा-रे ग-म-प-ध-नीत्यादिस्वरबोधकवर्णैः क्रियते / अन्यासक्तः = कार्यान्तरासक्तचित्तः। गीतिश्रवणप्रवणः / अवसरं = मुन्यागमनिवेदनावसरं / प्रतिपालयामि = प्रतीक्षिष्ये / नाट्ये रङ्गमध्ये नेपथ्यभिन्नं स्थानमाकाशमुच्यते / अभिनवेति / अभिनवे मधुनि, पाठान्तरे रसे वा / लोलुपः = लुब्धः / नूतनपुष्परससतृष्णः। 'समौ लोलुपलोलुभौ' इत्यमरः / भवान् = त्वम् / तथा = यथेच्छं / विविधलीलाविलसितैः / चूतमञ्जरीम् = आम्रवल्लरीं। माम् / परि = सर्वतोभावेन / परिचुम्ब्य = चुम्बित्वा / समुपभुज्य / मधुकर ! = हे भ्रमर ! मधुप्रियोऽपि तान से युक्त गीति ( गान ) के तथा वीणा के सुर-ताल का शब्द सुनाई दे रहा है। मालूम होता है-हंसवती ( कोई एक रानी) गाने का अभ्यास कर रही है। राजा-अच्छा, थोड़ा तुम चुप रहो, तो मैं भी सुनें। ___ कञ्चुकी-इस समय महाराज दूसरे काम ( गाना सुनने ) में लगे हुए हैं, अत: कुछ देर ठहर कर अवसर ( मौके ) की प्रतीक्षा करूँ। [एकान्त में = एक तरफ कोने में खड़ा हो जाता है / [आकाश में (नेपथ्य से अन्यत्र किसी स्थान में)-गीत गाया जा रहा है। हे मधुकर ! ( हे भँवरजी ! ) आप तो मधु = नए 2 फूलों के रस-के ही 1 'नेपथ्ये' पा० / 2 'लोहभाविदो' [लोभभावितः] / 3. अभिनवरसलोलुपः' पा०। 4 'लोलुभः।