________________ 118 अभिज्ञानशाकुन्तलम् [द्वितीयो विश्रब्धं क्रियतां वराहपतिभिर्मुस्ताक्षतिः पल्वले, विश्रामं लभतामिदञ्च शिथिलज्याबन्धमस्मद्धनुः // 6 // इति च भाषा] अभ्यस्यतु = यथेच्छं विधत्ताम् / मृगाणां-छायाबद्धयूथता, चर्वितचर्वणञ्चस्वभावः / किञ्च-वराहाणां पतयस्तैः-वराहपतिभिः सूकरयूथनाथैः / पल्वले= अल्पमरसि / जलगर्तेषु इति यावत् / “वेशन्तः पल्वलं चाल्पसरः-इत्यमरः / मुस्तानां क्षतिः मुस्ताख्यजलतृणोत्खननम् / 'कुरुविन्दो मेघनामा मुस्ता मुस्तकमस्त्रिया' मित्यमरः / मुस्ता = 'नागरमोथा' इति भाषा / विस्रब्धं - निर्भयं यथा स्यात्तथा / शिथिलो ज्याया बन्धो यत्र तत्-शिथिलज्याबन्धम् = अवरोपितशिञ्जिनीकम् , अस्माकमिदं धनुश्च, विश्राम = विश्रान्ति, लभताम् = अधिगच्छतु / 'शिथिलज्याबन्ध' मिति क्रियाविशेषणं वा / [ केचित्त-महिषाश्च, महिष्यश्च, मृगाश्च, मृग्यश्चेत्येवं महिषादिमिथुनपरतया, मुस्ता-विश्रान्ति-ज्यानां च स्त्रीलिङ्गनिद्दिष्टानां नायिकात्वारोपेण, क्षतौ च दन्तक्षतत्वारोपेण, बन्धपदेन च सुरत करणाक्षेपेण, बन्धशब्दस्य स्नेहवाचकतया सुरततान्तमौर्वीरूपनायिकाप्रणयवत्त्वेन च, नायक-नायिकामिथुनव्यापारसूचकतयाऽमुं व्याख्यान्ति, परन्तु च्छात्रानुपयोगितयाऽत्रास्माभिर्बोषमेवास्यते / स्वभावोक्तिः, कार्यकारणयोः समकालं कथनादतिशयोक्तिश्च अलङ्कारौ] // 6 // झुण्ड बान्धकर, निर्भय होकर, रोमन्थ का अभ्यास ( जुगाली) करें। [ पशु घासको खासकर फिर शान्ति से उसे उगाल-उगाल कर धीरे 2 चबाकर खाते हैं, उसे रोमन्थ करना, या जुगाली करना कहते हैं / ___ और बूढ़े 2 जंगली सूअर भी छोटे छोटे तालाबों के किनारे निर्भय होकर मुस्ता (मोथा) को खोद 2 कर खाएं / (सूअरों का यह स्वभाव है कि वे छोटे 2 तालाबों के किनारे नागरमोथा आदि की जड़ों को खोद कर खाया करते हैं ) / और जिसकी प्रत्यञ्चा = डोरी ढीली कर दी गई है-ऐसा मेरा यह धनुष भी आज तो विश्राम ही करे। अर्थात्-आज शिकार नहीं खेली जायगी। अतः महिष, मृग, सूकर आदि वन्य पशुओं को आज तो निर्भय होकर स्वच्छन्द विचरने दो // 6 // 1 'विस्रब्धैरिति पा