________________ 243 ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटोका-विराजितम् [एवं नाम विषयपराङ्मुखस्य जनस्य ने निपतितं-यथा तेन राज्ञा शकुन्तलायामनार्यमाचरितमिति ] / शिष्यः- यावदुपस्थितां होमवेलां गुरवे निवेदयामि / (-इति निष्क्रान्तः ) / अनसूया-णं पहादा रजणी / ता सिग्धं सअणं परिचआमि / अथवा लहु लहु उस्थिदावि किं करिस्सं, ण मे उइदेसुं पहादकरणीएसुं हत्थपाआ प्पसरन्ति / कामो दाणिं सकामो भोदु, जेण असञ्चसन्धे जणे पिअसही एवं नाम = ईदृशं / विषयेभ्यः पराङ्मुखस्तस्य = विषयविरतस्य / धर्मप्रवणस्य / कामोपभोगविमुखस्य / जनस्य = तपस्विलोकस्य / न निपतितं न जातं / नोत्पन्नमिति वा / 'न विदित'मिति पाठान्तरे तु-मादृशस्य-न विदितं = न ज्ञातं / न केनापि स्मर्यत इत्यर्थः / यथा= यादृशं / शकुन्तलायां = तामधिकृत्य / अनार्यम् = असजनोचितम् / उपस्थितां = प्राप्तां / होमवेलां = हवनकालं / गुरवे = कण्वाय / निवेदयामि = निर्दिशामि / लघु-लघु = त्वरितं त्वरितं / प्रभातकरणीयेषु = प्रातःकर्तव्येषु गृहकभी किसी ने नहीं किया था, जैसा अनुचित व्यवहार तपस्विनी शकुन्तला के साथ राजा दुष्यन्त ने -पहिले तो उसे लुभा कर, अपने वशीभूत कर, फिर इस प्रकार इसे भुलाकर-किया है। अर्थात् -पहिले तो लम्बी-चौड़ी बातें बनाकर बेचारी भोली-भाली सीधी-सादी शकुन्तला को उस राजा ने फँसा कर उससे गान्धर्व विवाह कर लिया, अब उस बेचारी की खबर तक वह राजा दुष्यन्त नहीं ले रहा है, यह बहुत ही अनुचित काम दुष्यन्त ने किया है। ['अपटी' नाम पर्दे ( कनात ) का है। पर्दा हटाकर सहसा अनसूया प्रविष्ट होकर यह बात कह रही है। जब कोई ज्यादा गड़बड़ ( व्यतिक्रम) की बात नाटक में सुनानी होती है, तब अपटीक्षेप से पात्र का प्रवेश कराया जाता है। अन्यथा साधारण दशा में नाटकों में असूचित पात्र का प्रवेश कभी नहीं होता है / ___शिष्य-अच्छा तो मैं 'होम का समय हो गया है। यह बात गुरुजी को जाकर कहता हूँ / (-जाता है)। अनसूया-अब तो सबेरा हो गया है, अतः जल्दी ही शय्या = 1 'न विदितम्' इति पाठान्तरम् /