________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 275 शिष्यो-भगवन् ! 'ओदकान्तं स्निग्धोऽनुगम्यते' इति श्रूयते। तदिदं सरसीतीरम् / अत्र नः सन्दिश्य प्रतिगन्तुमर्हसि / कण्वः तेन हीमां क्षोरिवृक्षच्छायामाश्रयामः / (सर्वे-तथा नाटयन्ति ) / कण्वः-किंनु खलु तत्रभवतो दुष्यन्तस्य युक्तरूपं सन्देष्टव्यम् ? / (-इति चिन्तयति)। आ उदकान्तम्-ओदकान्तं = जलाशयपर्यन्तं / स्निग्धः = प्रियः / गच्छन् = प्रचलन् / अनुगम्यते = बन्धुभिरनुस्रियते / श्रूयते = श्रुत्या प्रतिपाद्यते / सरसीतीरं / = सरोवरतीरं / नः = अस्मान् / सन्दिश्य = किं राज्ञे वक्तव्यमित्यादिकमुपदिश्य / प्रतिगन्तुमर्हसि = निवर्तितुमर्हसि / 'क्षीरवृक्ष' इति पाठान्तरे-क्षीरप्रधानो वृश्चःक्षीरवृक्षः। तस्य च्छायां = क्षीरिणो वटवृक्षादेश्छायाम् / क्षीरिवृक्षपर्यन्तमुदकाधारपर्यन्तं वा प्रियजनानुगमनस्य श्रुतिसिद्धत्वान्माङ्गल्यार्थञ्च क्षीरिवृक्षोपादानम् / 'ओदकान्त प्रियं प्रोथमनुव्रजे'दिति हि श्रुतिः। तत्रभवतः = मान्यस्य राजर्षेः। अतिशयेन युक्तं-युक्तरूपं = योग्यम् / - दोनों शिष्य हे भगवन् ! परदेश जाते हुए अपने स्नेहो बन्धुजनका जलाशय पर्यन्त ही अनुगमन करना चाहिए-ऐसो अति है। और यह सरोवर का तट भी आगया है, अतः हम लोगों को आवश्यक सन्देश देकर आप अब आश्रम को लौट जावें / [ अपना स्नेहो जन = बन्धुबान्धव जब परदेश जाए, तो उसको जलाशय तक साथ जाकर पहुँचाना चाहिए-ऐसा शिष्टाचार है, एवं श्रुति भी है। इसीलिए कण्व भी शकुन्तला को सरोवर तक पहुँचाने आए हैं। ___ कण्व-तो ठीक है, हम लोग इस दूधवाले वृक्ष (तोड़ने पर जिस वृक्ष से दूध निकले, जैसे-बड, पीपल, गलर, आदि) की छाया में खड़े हो जाएँ। . . [ सब-क्षीरी ( वट पीपल आदि ) वृक्ष की छाया में खड़े होते हैं ] / कण्व-माननीय राजा दुष्यन्त को मैं उसके अनुरूप एवं उचित क्या . सन्देश ( सन्देशा ) दूँ ? / ( कुछ सोचते हैं ) /