________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटोका-विराजितम् 271 * सख्यौ--अअं जणो दाणिं कस्स हत्थे समप्पिदो ? / (-इति बाप्पं विसृजतः ) / - [अयं जन इदानीं कस्य हस्ते समपितः ? ( -इति बाष्पं विसृजतः)] / कण्वः-अनसूये !, प्रियंवदे ! अलं रुदितेन / ननु भवतीभ्यामव शकुन्तला स्थिरीकर्तव्या। (-इति सर्व परिक्रामन्ति ) / शकुन्तला-(विलोक्य-) ताद ! एसा उडअपजन्तचारिणी गम्भहारमन्थरा मिअवहू जदा सुहप्पसवा भविस्सदि, तदा मे कम्पि पिअणिवेदअं विसज्जइस्ससि, मा एदं विसुमरिस्ससि / / [(विलोक्य-) तात ! एषा उट जपर्य्यन्तचारिणी गर्भभारमन्थरा मृगवर्यदा सुखप्रसवा भविष्यति, तदा मे कमपि प्रियनिवेदनक विसज्जयिष्यसि / मा इदं विस्मरिष्यसि / भवतीभ्यां परिक्षणीयेयमितिभावः / अयं जनः = सखीजनः / भवतीभ्यामेव = युवाभ्यामेव / स्थिरीकर्तव्या = सान्स्वनीया। परिक्रामन्ति = गच्छन्ति / उटजस्य = पर्णशालायाः, पर्यन्ते = समीपे चरितुं शीलमस्याः सा। गर्भभारेण मन्थरा = गर्भभारमन्दगमना / मृगवधूः = हरिणी / सुखेन प्रसवो यस्याः “सा, तथा = सुखप्रसूतिः। निवेद्यते अनेनासौ-निवेदनः / प्रियस्य निवेदन एव निवेदनकः = शुभसूचको जनः। तं विसर्जयिष्यसि = दोनों सखियाँ-और हे सखि ! हम लोगों को तुम किसके सहारे छोड़कर जा रही हो ? / ( दोनों आँसू बहाती हैं ) / ... कण्व-हे अनसूये ! हे प्रियंवदे! तुम लोग रोओ मत / तुम लोगों को तो शकुन्तला को ही धीरज देना चाहिए, उलटे तुम लोग ही रो रही हो ! . (सब लोग कुछ 2 धीरे 2 चलते हैं ) / शकुन्तला-( देखकर ) हे तात ! कुटी के पास फिरती हुई, गर्भ भार से * क्लान्त, यह मृगी जब सुख से प्रसव कर ले, (जब इसके बच्चा हो जाए ), तो इस प्रिय वृत्तान्त को सुनाने के लिए मेरे पास किसी शुभ समाचार पहुंचाने वाले दूत को आप अवश्य भेजिएगा / यह बात आप भूल मत जाइएगा।