________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 159 AARAA Anmownnnnnn. लतावलयवत्सु मालिनीतीरेषु ससखीजना तत्रभवती शकुन्तला गमयति / भवतु, तत्रैव तावद्गच्छामि / ( परिक्रम्यावलोक्य च-) अनया बालपादपवीथ्या-सुतनुरचिरं गतेति तर्कयामि / कुतः संमीलन्ति न तावद्धन्धनकोषास्तयाऽवचितपुष्पाः / क्षीरस्निग्धाश्चाऽमी दृश्यन्ते किसलयच्छेदाः // 7 // अन्वेक्ष्यामि। 'यावत्पुरानिपातयो रिति भविष्यदर्थे लट् / अव॑ = उपरि, गगनमभि, उग्रस्तपः = आतपो यस्यां सा ताम्-उग्रतपां = प्रखरातपवतीम् / वेलां = समयं / मध्याह्नकालं / लतानां वलयानि विद्यन्ते येषु-तेषु-लतावलयवत्सु = लतामण्डलमण्डितेषु / सखीजनेन सहिता-ससखीजना = सखीजनसहिता / प्रायेण गमयति = प्रायोऽतिवाहयति / [ 'यावदेना' मित्यारभ्य 'तावद्गच्छामी'त्यन्तेन परिसो नाम प्रतिमुखाङ्गं दर्शितं / 'दृष्टनष्टानुसरणं परिसर्प इतीरित:--इत्युक्तेः ] / ___अनया = पुरतो दृश्यमानया / बालाश्च ते पादपाश्च बालपादपास्तेषां वीथिस्तया-बालपादपवीथ्या = अभिनवतरुपङ्क्तिपरिसरमार्गेण / सुतुनुः = शकुन्तला / तर्कयामि = सम्भावयामि / एवं सम्भवनायां हेतुमाह-संमीलन्तीति / तया = शकुन्तलया / अवचितानि-पुष्पाणि येभ्यस्ते–अवचितपुष्पाः = आच्छिन्नकुसुमाः। बन्धनानां कोषाः-बन्धनकोषाः = प्रसवबन्धनोदराणि / न तावत् = नाद्यापि / संमीलन्ति = सङ्कुचन्ति / किञ्च क्षीरेण स्निग्धाः,-क्षीरस्निग्धाः = दुग्धमसृणाः / मिल नहीं सकती है, अतः मैं अपनी प्रिया को ही खोजता हूँ / ( ऊपर आकाश की ओर देखकर-) इस प्रखर ताप वाले दोपहर के समय को तो मेरी प्रिया शकुन्तला अपनी सखियों के साथ प्रायः लता-मण्डपों से आच्छन्न मालिनी नदी के तीर पर ही बिताया करती है / अच्छा तो फिर वहीं चलता हूँ। ( कुछ चल कर, आगे की ओर देख कर-) इन छोटे 2 पौधों की पक्तियों के बीच से होती हुई वह सुतनु = सुन्दरी शकुन्तला गई है-ऐसा मालूम होता है / क्योंकि___. उसके हाथ से तोड़े गए पुष्पों के वृन्त ( बन्धन-डंठल ) अभी तक संकुचित नहीं हुए हैं / अतः तत्काल ही यहाँ से पुष्प तोड़े गए हैं-ऐसा ज्ञात होता है / और ये कोमल पल्लवों के भङ्ग ( जहाँ से पत्ते तोड़े गए हैं वह