________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 79 प्रियंवदा-( सस्मितं शकुन्तलां विलोक्य, नायकाभिमुखी भूत्वा-) पुणो बि वत्तुकामो विअ अजो लक्खीअदि / [ ( सस्मितं शकुन्तलां विलोक्य नायकाभिमुखी भूत्वा ) पुनरपि वक्तुकाम इव आर्यो लक्ष्यते] / (शकुन्तला-सखीमङ्गुल्या तर्जयती)। राजा-सम्यगुपलक्षितं भवत्या / अस्ति नः सच्चरितश्रवणलोभादन्यदपि प्रष्टव्यम् / प्रियंवदा-तेण हि अलं विआरिदेण, अणिजन्तणाणुजोओ क्खु तवस्सिजगो [युक्तिर्नाम सन्ध्यङ्गमेतत् / 'सम्प्रधारणमर्थानां युक्ति'रिति-साहित्यदर्पणात् तत्र-सम्प्रधारण = निश्चयः] / सस्मितं शकुन्तलां विलोक्य = 'जातस्ते मनोरथ' इति शकुन्तलाया उपहासेन वा तां साकूत विल क्य, नायकः = दुष्यन्तः / लक्ष्यत इति / स्वविवक्षितं निश्शकमाख्याहीत्याशयः / तर्जयति = ताडयति / इत्थं प्रियंवदाया धाय॑दृष्ट्वा माऽनल्पं जल्पेति सङ्केतं करोति-इति वा / सम्यक = सत्यम्, उपलक्षितं = ज्ञातं / सत् च तच्चरितञ्च तस्मिन् लभः, तस्मात् = पुण्यप्रदोपाख्यानश्रवणालोभात् / अन्यदपि = क्षत्रिय की पुत्री है, कग्व की औरस कन्या नहीं है, अतः मैं इसे अब प्राप्त कर सकूँगा / परन्तु इसकी सखाने परिहास में इम (शकुन्तला) से जो यह कहा था, कि-'तेरा अब विवाह शीघ्र ही होगा', इससे तो मैं शङ्कित और व्याकुल सा हो रहा हूँ। कहीं इसका विवाह सम्बन्ध अन्यत्र तो ठीक नहीं हो गया है। प्रियंवदा-(मुसकुराती हुई शकुन्तला की ओर देखकर नायक की ओर मुख करके ) मालूम होता है-आप और भी कुछ पूछना चाहते हैं। [ शकुन्तला-सखोको अङ्गुली से मना करती है, या अङ्गुला से कोंचती ( खोदती ) है / राजा-आपने ठीक ही समझा / मुझे इस अच्छे प्रसंग को सुनने का लोभ-सा हो रहा है। अतः मैं इस प्रसंग में और भी कुछ पूछना चाहता हूँ। प्रियंवदा-तो ठीक बात है। आप कोई विचार न करें / हम तपस्वी१ क्वचिन्न।