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। प्रस्तावना
४१ तो वह अपना काम करता ही नहीं। किन्तु जब तक वह अपना काम नहीं करता है तब तक उसकी वह अवस्था सत्ता नामसे अभिहित होती है। उत्कर्षण श्रादिके निमित्तसे होनेवाले अपवादको छोड़कर साधारणत प्रत्येक कार्मका नियम है कि वह बंधने के बाद कासे काम करने लाता है। वीचमें जितने काल तक काम नहीं करता है उसकी भावाधाकाल सज्ञा है । भावाधाकालके बाद प्रति समय एक एक निपेक काम करता है । यह क्रम विवक्षित कर्मके पूरे होने तक चालू रहता है। आगममें प्रथम निपेककी श्राबाधा दी गई है। शेष निषेकोंकी आवाधा क्रमसे एक एक समय बढ़ती जाती है। इस हिसाबसे अन्तिम निषेकी
आवाधा एक समय कम कर्मस्थिति प्रमाण होती है। आयुकर्मके प्रथम निषेककी श्राबाधाका क्रम जुदा है। शेष क्रम समान है।
उत्कर्पण-स्थिति और अनुभागके बढ़ानेकी उत्कर्षण सज्ञा है। यह क्रिया बन्धके समय ही सम्भव है। अर्थात् जिस कर्मका स्थिति और अनुभाग बढ़ाया जाता है उसका पुन. बन्ध होने पर पिछले बधे हुए कर्मका नवीन बन्धके समय स्थिति अनुभाग बढ़ सकता है। यह साधारण नियम है। अपवाद भी इसके अनेक हैं। ___ अपकर्षण-स्थिति और अनुमागके घटानेकी अपकर्षण संज्ञा है। कुछ अपवादोंको छोड़कर किसी भी कर्मकी स्थिति और अनुभाग कम किया जा सकता है। इतनी विशेषता है कि शुभ परिणामोंसे अशुभ कर्मों का स्थिति और अनुभाग कम होता है। तथा अशुभ परिणामोंसे शुभ कर्मोंका स्थिति और अनुभाग कम होता है। __सक्रमण-एक कर्म प्रकृतिके परमाणुओंका सजातीय दूसरी प्रकृतिरूप हो जाना सक्रमण है यया असाताके परमाणुनोंका सातारूप हो जाना। मूल काँका परस्पर संक्रमण नहीं होता। यथा ज्ञानावरण दर्शनावरण नहीं हो सकता । प्रायुकर्मके भवान्तर भेदोंका परस्पर