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योगादिकमें भंगविचार
१३. योग, उपयोग और लेश्याओं में संवेध भङ्ग
अव योग और उपयोगादिकी अपेक्षा इन भंगोका कथन करनेके लिये आगेकी गाथा कहते हैं
जोगोवयोगले साइएहिं गुणिया हवंति कायव्वा । तत्थ गुणकारी ||४७||
जे जत्थ गुणट्ठाणे हवंति ते अर्थ-इन उदयभगोको योग, उपयोग और लेश्या आदि से गुणित करना चाहिये । इसके लिये जिस गुणस्थानमें जितने योगादि हों वहाँ गुणकारकी संख्या उतनी होती है ||
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विशेषार्थ - किस गुणस्थानमें कितने उदय विकल्प और कितने पदवृन्द होते हैं इसका निर्देश पहले कर हो आये हैं । किन्तु अभीतक यह नहीं बतलाया कि योग, उपयोग और लेश्याश्रकी अपेक्षा उनकी सख्या कितनी हो जाती है, अतः आगे इसी चातके बतानेका प्रयत्न किया जाता है ।
इस विषय में सामान्य नियम तो यह है कि जिस गुणस्थानमे योगादिक की जितनी सख्या हो उससे उस गुणस्थानके उदयविकल्प और पदवृन्दों को गुणित कर देने पर योगादिकी अपेक्षा प्रत्येक गुणस्थानमें उदयविकल्प और पदवृन्द आ जाते है । अतः
(१) ' एव जोगुवओोगा लेसाई भेयश्री बहूमेया । जा जस्स जमिठ गुणे सस्ता सा तमि गुणगारो ॥-पञ्च० सप्त० गा० ११७ । 'उदय हाणं पयति सगसग जो जोग प्रदीहिं । गुणा यिता भेलनिदे पदसंखा पयडिसखा य म ' - गो० कर्म० गा० ४६० 1
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