Book Title: Saptatikaprakaran
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 443
________________ ३६१ दर्शनमाहनीयकी क्षपणा अपूर्वकरणके अन्तिम समय तक चालू रहता है। इससे अपूर्वकरणके पहले समयमे जितनी स्थिति हाती है अन्तिम समयमें उमसे सख्यातगुण होन अर्थात् सख्यातवा भाग स्थिति रह जाती है। इसके बाद यह अनिवृत्तिकरणमें प्रवेश करता है। यहाँ भी स्थितिघात आदि कार्य पहलेके सनान चालू रहते है। अनिवृत्तिकरणके पहले समयमें दर्शनत्रिककी देशोपशमना, नित्ति और निवाचनाका विच्छेद हो जाता है। अनिवृत्तिकरणके पहले समयसे लेकर हजारो स्थितिखण्डोंका घात हो जाने पर दर्शन त्रिककी स्थितिसत्ता असन्जीके योग्य शेप रहती है । इसके बाद हजार पृथकत्व प्रमाण स्थिति खण्डोका घात हो जाने पर चौइन्द्रिय जीवके योग्य स्थितिसत्ता शेप रहती है। इसके बाद उक्त प्रमाण स्थितिखण्डोंका घात हो जाने पर तीन इन्द्रिय जीवके योग्य स्थिति सत्ता शेप रहती है। इसके बाद पुन उक्त प्रमाण स्थितिखण्डोका घात हो जाने पर दो इन्द्रिय जीवके योग्य स्थितिसत्ताशेप रहती है। इसके बाद पुन उक्त प्रमाण स्थितिखण्डोका घात हो जाने पर एकेन्द्रिय जीवके योग्य स्थितिसत्ता शेष रहती है। इसके वाढ पुनरपि उक्त प्रमाण स्थितिखण्डोंका घात हो जाने पर पल्यके असख्यातवे भागप्रमाण स्थितिमत्ता शेप रहती है । तदनन्दर तीनों प्रकृतियोकी स्थितिके एक भागको छोड़कर शेप बहुभागका घात करता है। तदनन्तर पुनरपि एक भागको छोड़कर शेप बहु भागका घात करता है। इस प्रकार इस क्रमसे भी हजारो स्थितिखडी का घात करता है, तदनन्तर मिथ्यात्वकी स्थितिके असख्यात भागोंका तथा सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वके सख्यात भागोका घात करता है। इस प्रकार प्रभूत स्थितिखडोके व्यतीत हो जाने पर मिथ्यात्वके दलिक आवलिप्रमाण शेप रहते हैं। तथा सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वके दलिक पल्यके असख्यात भागप्रमाण शेष रहते हैं। तिकेपि भी

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