Book Title: Saptatikaprakaran
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 475
________________ ३६३ ४ परिशिष्ट बंधोदयकम्मंसा णाणावरणतराइए पच। पंधोवरमे वि तहा वदयमा हॉति पंचेव ॥ ६ ॥ णम छक्क पत्तारि य सिपिण य ठाणाणि ६सणावरणे । बंधे सते टए दोणि य चत्तारि पच वा होति ॥ ७ ॥ समयमधे सते मता णव होति छच खीणम्मि | वीणते संतुदया घर तेसु चारि पंच वा उदयं ॥८॥ गोदेसु सत्त भगा भह य भगा हवति वेयणिए । पण णव पण व सपा पारचाके वि कमसो दु॥६॥ रासमेधावीस गत्तारस तेरसेव नव पच । घर तिय दुय च एय बाणाणि मोहम्स ॥ १०॥ उम्बावीसे घर इगयोपे सत्तरम तेर दो दोसु। णवधए यि टोणि य पुगेगमदो पर भगा ॥ ११ ॥ एक व दो य चत्तारि तटो एगाधिया दसुक्यास्सा। ओघेश मोहणिजे उदयद्वाणाणि णव होति ॥ १२॥ पठयमत्तयरमयचत्तियदुयएयअहियवीसा य । तेरम वारेयारं एत्तो पचादि एगण ॥ १३ ॥ सतस्स पयदिठाणाणि ताणि मोहस्म होति पण्णरस । बंधोदयसते पुणु भंगवियप्पा बहु जाणे ॥ १४ ॥ यावीसादिसु पंचसु दमादि वदया हवति पंचेव । सेमे दु दोणि एग एगेगमदो पर णेयं ॥ १५ ॥ णवपचाणदिसपहुदयविगप्पेहि मोहिया जीवा । जणत्तरिएयत्तरिपयवधमएहि विष्णेया ॥ १६ ॥ श्रादतियं वावीसे इगिवीसे अनीस कम्ममा । सत्तरस तेरम णव बंधए अडचउतिगदुगेगहियवीसा ॥१७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487