Book Title: Saptatikaprakaran
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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। परिशिष्ट वासीसा एगण बंधह अहारसंच अणियष्टी। सत्तरस सुहुममरामओ सायमरसेहो दु सजोई दु॥५४॥ एसो दु बंधसामित्तोपो गदिक्षादिएसु वोहन्यो । ओघाश्रो साहेज्जो जत्थ जहा पयढिसमवो होइ ॥ ५५ ॥ तित्थयरदेवणिरयाउगं च तीसु वि गढीसु वोहव्व । अवसेसा पयडीमो हवनि सव्वासु वि गदीम् ॥ ५६ ॥ पढमकसायचठक्कं दसणनिय सतया दु' उवसंता। अविरयसम्म सादी जाव णियहि त्ति णायव्वा ॥ ५७ ॥ सत्तावीसं सुहुमे भट्ठावीस च मोहपयडीओ। ववसतवीयराए स्वसता होति णायव्वा ॥ ५८ ॥ पढमकसायचउक्क एसो मिच्छत्त मिस्स सम्मत् । अविरद सम्मे देसे विरद अपमत्ते य खीयति ॥ ५९ ॥ भणियहिवायरे थीणगिद्धितिग गिरय तिरियणामाभो । संखेजदिमे सेसे तप्पाओग्गा य खीयति ॥ ६॥ एतो हणदि कसायव्यं च पच्छा णसय इत्थी । तो णोकसायछक्कं पुरिसवेदम्मि सछुहइ ॥ ६१॥ पुरिस कोहे कोहं माणे माण च छुहइ मायाए । माय च छुहद लोहे लोह सुहमम्मि तो हणइ ॥ १२॥ वीणकसायदुचरिमे णिहा पयला य हणइ छदुमत्यो । णाणतरायदसयं दसणवत्तारि चरिमम्हि ॥ ६३ ।। देवगइसहगयाओ दुचरिमभवसिद्धियम्हि खीयंति । सविवागेदरमणुयगइ णाम णीचं पि एत्येव ॥ ६४ ॥ अण्णयरवेयणीयं मणुयाज उच्चगोय णाम णव | चेदेदि भजोगिजिणो धक्कस्य जहण्णमेयार ॥६५॥

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