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मुसद्धातोंका निर्देश
३७३ सात भेद हैं-वेदना समुद्घात. कपायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात, तैजससमुद्घात, वैक्रियसमुद्घात, आहारकसमुद्घात
और केवलिसमुद्घात । तीव्र वेदनाके कारण जो समुद्घात होता है उसे वेदनासमुद्धात कहते हैं। क्रोधादिकके निमित्तसे जो समुद्धात होता है उसे कषायसमुद्धात कहते हैं । मरणके पहले उस निमित्तसे जो समुद्घात होता है उसे मारणान्तिक समुद्घात कहते हैं। जीवो अनुग्रह या विनाश करने में समर्थ तैजस शरीरको रचनाके लिये जो समुद्घात होता है उसे तैजससमुद्घात कहते हैं। वैक्रियशरीरके निमित्तसे जो समुद्घात होता है उसे वैक्रियसमुद्घात कहते हैं। आहारकशरीरके निमित्तसे जो समुद्घात होता है उसे आहारकममुद्घात कहते हैं। तथा वेदनीय आदि तीन अघातिकर्मों की स्थिति आयुकर्मके वरावर करनेके लिये केवली जिन जो समुद्घात करते हैं उसे केवलिसमुद्घात कहते हैं। इसमें आठ समय लगते हैं। पहले समयमें अपने शरीरका जितना वाहुल्य है तत्प्रमाण श्रात्मप्रदेशोंको ऊपर और नीचे लोकके अन्तपर्यन्त रचते हैं इसे दण्डसमुद्घात कहते हैं। दूसरे समयमें पूर्व और पश्चिम या दक्षिण और उत्तर दिशामें कपाटरूपसे आत्मप्रदेशोको फैलाते हैं। तोसरे समयमें उनका मन्थान समुद्घात करते है। चौथे समयमें लोकमे जो अवकाश शेष रहता है उसे भर देते हैं । पाँचवें समयमें सकोच करते हैं । छठे समयमें मन्थानका सकोच करते हैं। सातवें समयमें पुन. कपाट "अवस्थाको प्राप्त होते हैं और आठवें समयमें स्वशरीरस्थ हो जाते हैं। जो केवली समुद्घातको प्राप्त होते हैं वे समुद्घातके पश्चात् और जो समुद्घातको नहीं प्राप्त होते वे योगनिरोधके योग्य कालके शेप रहने पर योगनिरोधका प्रारम्भ करते हैं। इसमें सबसे पहले वादर काययोगके द्वारा वादर मनोयोगको रोकते हैं।