________________
इन्द्रियमार्गणामे नामकर्मके सवेध भग ३१५ पचेन्द्रियोमे २३ का बन्ध करनेवालेके २१, २६, २८, २६, ३० और ३१ ये छह उदयस्थान होते हैं। इनमेंसे २१ और २६ इन दो उदयस्थानॉमे पूर्वोक्त पाँच पाँच और शेप चार उदयस्थानोमें ७८ के विना चार-चार सत्तास्थान होते हैं। कुल मिलाकर यहाँ २६ सत्तास्थान हुए। २५ और २६ का वध करनेवालेके २१, २५, २६, २७, २८, २९, ३० और ३१ ये
आठ-आठ उदयस्थान होते है। इनमेंसे २१ और २६ इन उदयस्थानोमेसे प्रत्येकमे पाँच पाँच सत्तास्थान होते है जो पहले वतलाये ही हैं । २५ और २७ इन दोमे १२ और ८८ ये दो दो सत्तास्थान होते है। तथा शेप २८ आदि चार उदयस्थानोमे ७८ के विना चार-चार सत्तास्थान होते हैं। इस प्रकार २५
और २६ इन दो वन्धस्थानोमें तीस तीस सत्तास्थान होते हैं। २८ प्रकृतियोका बन्ध करनेवालेके २१, २५, २६, २७, २८, २६ ३० और ३१ ये आठ उदयस्थान होते हैं। ये सब उदयस्थान तिथंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य सम्बन्धी लेना चाहिये, क्योंकि २८ का वन्ध इन्हींके होता है। यहाँ २१ से लेकर २६ तक छह उदयस्थानोमेसे प्रत्येकमे ६२ और ८८ ये दो-दो सत्तास्थान होते हैं। ३० के उदयमे ६२, ८६, ८८ और ८६ ये चार सत्तास्थान होते हैं। यहाँ ८९ की सत्ता उस मनुष्यके जानना चाहिये जो तीर्थकर प्रकृतिकी सत्ताके साथ मिथ्याष्टि होते हुए नरक्गतिके योग्य २८ का वध करता है। तथा ३१ के उदयमें ६२,८८
और ८६ ये तीन सत्तास्थान होते है। ये तीनो सत्तास्थान तिथंच पचेन्द्रियोकी अपेक्षा कहे हैं, क्योकि अन्यत्र पचेन्द्रियके ३१ का उदय नहीं होता। उसमें भी ८६ प्रकृतिक सत्तास्थान मिथ्यादृष्टि तियेच पचेन्द्रियोके होता है सम्यग्दृष्टि तिथंच पचेन्द्रियोके नहीं, क्योकि सम्यग्दृष्टि तिर्यंचोके नियमसे देवद्विकका