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सप्ततिकाप्रकरण
किया जाता है उन्हें मार्गणा कहते हैं । मार्गणाके चौदह भेद हैं - गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद. कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञी और आहार | पुरानी परम्परा यह है कि जीवसम्बन्धी जिस किसी विशेष अवस्थाका वर्णन पहले सामान्यरूपसे किया जाता रहा है । तदनन्तर उसका विशेष चिन्तन चौदह मार्गणा ओके द्वारा आठ अनुयोगद्वारोंमे किया जाता रहा है । अनुयोगद्वार यह अधिकारका पर्यायवाची नाम है । ऐसे अधिकार यद्यपि पहले विपयविभागकी दृष्टिसे होनाधिक किये जाते रहे हैं । परन्तु मार्गणाओका विस्तृत विवेचन आठ अधिकारोमें ही पाया जाता है इसलिये वे मुख्यरूपसे आठ ही लिये जाते रहे हैं । इन अधिकारोके ये नाम हैं- सत् संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्पबहुत्व | भागाभाग नामके एक अधिकारका निर्देश और पाया जाता है, परन्तु वह अल्पबहुत्व से भिन्न नहीं है । इसलिये उसे अलग से नहीं गिनाया। मालूम होता है कि ग्रन्थकारने भी उसे पृथक् न मानकर ही आठ अधिकारोकी सूचना की है । इन अधिकारोका अर्थ इनके नामोसे ही स्पष्ट है । अर्थात् सदनुयोगद्वारमें यह बतलाया जाता है कि विवक्षित धर्म किन मार्गणाओ है और किनमें नहीं । सख्या अनुयोगद्वारमे उस विवक्षित धर्मवाले जीवोकी संख्या बतलाई जाती है। क्षेत्र अनुयोगद्वार में विवक्षित धर्मवाले जीवोका वर्तमान निवासस्थान बतलाया जाता है । स्पर्शन अनुयोगद्वार में उन विवक्षित धर्मवाले जीवोंने जितने क्षेत्रका पहले स्पर्श किया हो, अब कर रहे हैं और आगे करेंगे, उस सबका समुच्चयरूपसे निर्देश किया जाता है । काल अनुयोगद्वार में विवक्षित धर्मवाले जीवोंकीजघन्य' व उत्कृष्ट स्थितिका विचार किया जाता है । अन्तर
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