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गुणस्थानोंमें प्रकृतिवन्ध
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है कि अयोगीके रंचमात्र भी कर्मका वन्ध नहीं होता। इस प्रकार किस गुणस्थानवालेके कितनी प्रकृतियोका बन्ध होता है और कितनी प्रकृतियोका बन्ध नहीं होता इसका चार गाथाओ द्वारा विचार किया ।
अव उक्त कथनका सक्षेप में ज्ञान करानेके लिये - कोष्ठक देते हैं
गुणस्थान
मिथ्यादृष्टि
सास्वादन
मिश्र
[ ५५ ]
बन्धयोग १२० प्रकृतियाँ
}
अविरत सम्यग्दृष्टि
देशविरत
बन्ध
११७
१०१
७४
७७
६७
अवन्ध
३
१६
35
દ
४३
५३
बन्धविच्छेद
१६
२५
O
१०
18