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जीवसमासीमें भगविचार। २४५ अव योगोकी अपेक्षा पदवृन्दोका विचार अवसर प्राप्त है सो इसके लिये पहले अन्तर्भाष्य गाथा उद्धृत करते हैं।
'अट्ठो बत्तीस वत्तीसं सहिमेव वावन्ना।
चोयाल चोयाल वीसा वि य मिच्छमाईसु ।' अर्थात्-'मिथ्यावृष्टि आदि गुणस्थानोमें क्रमसे अरसठ, वत्तीस, साठ, वत्तीस, साठ, वाचन, चवालीस, चवालीस और बीस उदयपन होते हैं।
यहाँ उदयपदसे उदयस्थानो की प्रकृतियाँ ली गई हैं। जैसे, मिथ्यात्वर्मे १०, ६, ८ और ७ ये चार उदयस्थान हैं । सो इनमेंसे १० उदयस्थान एक है अत इसकी १० प्रकृतियाँ हुई। प्रकृतिक उदय स्थान तान है अत इसकी २७ प्रकृतियाँ हुई। ८ प्रकृतिक उदयस्थान भी तीन हैं अत इसकी २४ प्रकृतियाँ हुई । और ७ प्रकृतिक उदयस्थान एक है अत. इसकी ७ प्रकृतियाँ हुई। इस प्रकार मिथ्यात्वमे ४ उदयस्थानो की ६८ प्रकृतियाँ होती हैं। सास्वादन आदिमे जो ३२ आदि उदयपद बतलाये हैं उनका भी रहस्य इसी प्रकार समझना चाहिये । अब यदि इन आठ गुणस्थानोंके सब उदयपदोंको जोड दिया जाय तो उनका कुल प्रमाण ३५२ होता है। किन्तु इनमे से प्रत्येक उदयपदमे चौवीस चौबीस भङ्ग होते हैं अतः ३५२ को २४ से गुणित कर देने पर ८४४८ प्राप्त होते हैं। यह विवेचन अपूर्वकरण गुणस्थान तक का है अभी अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थान का विचार शेष है अत इन दो गुणस्थानों के २६ भङ्ग पूर्वोक्त संख्यामे मिला देने पर कुल ८४७७ प्राप्त होते हैं। इस प्रकार यांगादिक की अपेक्षाके विना मोहनीयके कुल पदवृन्द ८४७७ होते हैं यह सिद्ध हुआ। अब जव कि हम योगोकी अपेक्षा दसो गणस्थानोम पदवृन्द लाना चाहते हैं तो हमें दो बातों पर विशेष ध्यान देना होगा। एक तो यह कि किप्त गुण