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गुणस्थानोंमें नामकर्मके संवैध भंग २६९ तथा ७८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और तिर्यच पंचेन्द्रियोकी अपेक्षा जानना चाहिये । २४ प्रकृतिक उदयस्थानमें ८६ को छोड़कर शेप ५ सत्त्वस्थान होते हैं। जो सब एकेन्द्रियोकी अपेक्षा जानना चाहिये, क्योकि एकेन्द्रियोको छोडकर शेप जीवोंके २४ प्रकृतिक उदयस्थान नहीं होता।२५ प्रकृतिक उदयस्थानमें पूर्वोक्त छहो सत्त्वस्थान होते हैं। सो इनका विशेप विचार २१ प्रकृतिक उदयस्थानके समानजानना चाहिये । २६ प्रकृतिक उदयस्थानमे ८९ को छोडकर शेप पाँच सत्त्वस्थान होते हैं। यहाँ ८८ प्रकृतिक सत्वस्थानके नहीं प्राप्त होनेका कारण यह है कि मिथ्यात्वमें उस जीवके यह सत्त्वस्थान होता है जो नारकियोंमें उत्पन्न होनेवाला है पर नारक्यिोके २६ प्रकृतिक उदयस्थान नहीं होता । २७ प्रकृतिक उदयम्थानमे ७९ के विना शेप ५ सत्त्वस्थान होते हैं। ८६ प्रकृतिक सत्त्वस्थान किसके होता है इसका व्याख्यान तो पहलेके समान जानना चाहिये । ९२ और ८८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान देव, नारकी, मनुप्य, विकलेन्द्रिय, तियेच पचेन्द्रिय और एकेन्द्रियोकी अपेक्षा जानना चाहिये। तथा ८६ और ८० सत्त्वस्थान एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, तिथंचपचेन्द्रिय और मनुप्योकी अपेक्षा जानना चाहिये । यहाँ ७८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान इसलिये सम्भव नहीं है, क्योकि २७ प्रकृतिक उदयस्थान अग्निकायिक और वायु कायिक जीवोको छोड़कर आतप या उद्योतके साथ अन्य एके न्द्रियोके होता है या नारकियोंके होता है पर इनके ७८ की सत्ता नहीं पाई जाती। २८ प्रकृतिक उदयस्थानमें ये ही पाँच सत्त्वस्थान होते हैं। सो इनमेंसे ९२, ८६ और ८८ का विवेचन पूर्ववत् है। तथा ८६ और ८० ये सत्त्वस्थान विकलेन्द्रिय, नियंचपचेन्द्रिय और मनुष्योके जानना चाहिये । २६ प्रकृतिक