________________
२७४
सप्ततिकाप्रकरण
विकलेन्द्रिय, तिर्यच पंचेन्द्रिय, मनुष्य, देव और नारकी जीव
6
बांधते हैं। इसके कुल भंग ३२०० होते है । इस प्रकार सास्वादनमें तीन बन्धस्थान और उनके भंग ९६०८ होते हैं । अन्तर्भाष्य गाथामें भी कहा है
'अ य सय चोवट्ठि बत्तीस सया य सासणे भैया । अट्ठावीसाईसुं सव्वाणट्ठहिंग छरणाउई ॥'
अर्थात् - 'सास्वादनमे २८ आदि बन्धस्थानोंके क्रमसे ८, ६४०० और ३२०० भेद होते हैं । तथा ये सब मिल कर ९६०८ होते हैं ।'
सास्वादनमे उदयस्थान ७ हैं - २१, २४, २५, २६, २६, ३० और ३१ । इनमेसे २१प्रकृतियोका उदय एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, तिर्यंचपंचेन्द्रिय, मनुष्य और देवोके होता है। नारकियोमे सास्वादन सम्यदृष्टि जीव नहीं उत्पन्न होते अतः सास्वादन मे नारकियोके २१ प्रकृतिक उदयस्थान नहीं कहा। एकेन्द्रियोके २१ प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए बादर और पर्याप्तकके साथ यशःकीर्तिके विकल्पसे दो भंगही सम्भव हैं, क्यो कि सूक्ष्म और अपर्याप्तकोमें सास्वादन जीव नहीं उत्पन्न होता और इसीलिये विकलेन्द्रिय, तिर्यच पंचेन्द्रिय और मनुष्योके प्रत्येक और अपर्याप्तकके साथ जो एक एक भंग होता है वह वहां सम्भव नहीं है। हां शेष भंग सम्भव. हैं । जो विकलेन्द्रियोंके दो, दो इस प्रकार छह तिर्यंचपंचेन्द्रियोंके ८, मनुष्योंके और देवोंके ८ होते हैं। इस प्रकार २१ प्रकृतिक
"
7
+