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गुणस्थानों में नामकर्मके सवेधभग २६३ सत्तास्थान उसी क्रमसे रहे आते हैं जिस क्रमसे वह पहले वॉधता था। अर्थात् जो पहले २८ प्रकृतियोंका बन्ध करता था उपके ८८ की, जो २६ का वध करता था उसके ८६ की, जो ३० का वन्ध करता था उसके ९२ की और जो ३१ का बन्ध करता या उसके ६३ की सत्ता रही आती है। इसलिये एक प्रकृतिक वन्धम्थानमे चारों सत्तास्थान प्राप्त होते हैं। अपूर्वकरणमे बन्ध, उदय और सत्तास्थानोंके सवेधका
ज्ञापक कोष्ठक[४५]
पन्धास्थान मग
उदयस्थान
भग
सत्तास्थान
२८
१
३०
| २४ या ७२
९
।
३०
| २४ या ७२
। ३० । १
३० । २४ या ७२
-
-
२४ या ७२
२४ या ७२
८८,८८, ६२, ९३