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गतिमार्गणामें नामकर्मके संवेधभग। २९९ एकेन्द्रियके योग्य प्रकृतियांका वन्ध करनेवाले देवोके जानना चाहिये । तथा इसमे आतप या उद्योतके मिला देने पर २६ प्रकतिक बन्धस्थान होता है। यहाँ २५ प्रकृतिक वन्धम्थानके भग
और २६ प्रकृतिक वन्धस्थानके १६ भग होते हैं। २६ प्रकृतिक वन्धस्थान मनुष्यगति प्रायोग्य या नियंचगति प्रायोग्य दोनो प्रकार का है। तथा उद्योत सहित ३० प्रकृतिक बन्धस्थान तिर्यंचगति प्रायोग्य है, और तीर्थकर प्रकृति सहित ३० प्रकृतिक बन्धस्थान मनुष्यगति प्रायोग्य है।
अव उदयस्थानोका विचार करते हैं-नरकगतिमे पाँच उदयस्थान हैं-२१, २५, २७, २८ और २६ । तिर्यंचगतिमें नौ उदयस्थान है ---२१, २४, २५, २६, २७, २८, २६, ३० और ३१ । मनुष्यगतिमें ग्यारह उदयस्थान हैं-२०, २१, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१, ६, और ८ । देवगतिमें छह उदयस्थान हैं-२१, २५, २७, २८, २६ और ३०। । ___अव सत्तास्थानोको बतलाते है-नरकगतिमे तीन सत्तास्थान हैं-९२, ८६ और ८८ । तिर्यंचगतिमें पाँच सत्तास्थान है-६२, 4८,८६, ८० और ७८ । मनुष्यगतिमे ग्यारह सत्तास्थान हैं-६३, ६२, ८६, ८८, ८६, ८०, ७६, ७६, ७५, ९ और छ । देवगतिम चार सत्तास्थान है-~६३, ९२, ८९ और ८८ ।
अव नरक गतिमे संवेधका विचार करते हैं-पंचेद्रिय तिर्यंचगतिके योग्य २९ प्रकृतियोका बन्ध करनेवाले नारकियोके पूर्वोक्त