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गतिमार्गणामे नामकर्मके सवेधभंग नरकगतिमें नामकर्मके बन्ध, उदय और सत्ताम्थानांके मवेधका ज्ञापक कोष्टक
[४८ ]
i অলংকাল | পণ | কয়ন | মন
सत्तास्थान
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९२, ८२, ८८
२, ८६, ८८ ६२,८९. દર ૮૬ ૮૮
२२१
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४६१६
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९२ ८९८ १२, ८६,
२,८६, १J१२,८६,८८
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नियंचगनिमे २३ प्रकृनियोका बन्ध करनेवाले तिर्यचके यद्यपि पूर्वोक्त नी ही उदयस्थान होते है। फिर भी इनमसे प्रारम्भके २१, २४, ०५ श्रीर ०६ इन चार उज्यस्थानों में से प्रत्येक १२, ८८, ८०, ८० और ७८ चे पाँच पाँच सत्तास्थान होते हे और अन्तके पाँच उदयस्थानोममे प्रत्येकी ७८ के विना चार चार सत्तास्थान होते हैं, क्योकि २७ प्रकृतिक श्रादि उदयाथानामे नियमसे मनुष्यद्विककी सत्ता सम्भव है, अत इनमें ७५ प्रकृतिक सत्तास्थान नहीं पाया जाता । इसी प्रकार २५, २६, २६ और ३० प्रकृतिक बन्ध.