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सप्ततिकाप्रकरण अर्थ-नारकी श्रादिके, क्रमसे दो, छह, आठ और चार, वन्धस्थान ; पाँच, नौ, ग्यारह और पाँच उदयस्थान तथा तीन, पाँच, ग्यारह और चार सत्त्वस्थान होते हैं।
विशेषार्थ- इस गाथामें, किस गतिमें कितने वन्ध, उदय और सत्त्वस्थान होते है इसका निर्देश किया है। तदनुसार आगे इसीका विशेष खुलासा करते है-नरकगतिमे दो बन्धस्थान हैं२९ और ३० । इनमेंसे २९ प्रकृतिक बन्धस्थान तिर्यंचगति और मनुष्यगति प्रायोग्य दोनों प्रकार का है। तथा उद्योत सहित ३० प्रकृतिक वन्धस्थान तिर्यंचगति प्रायोग्य है और तीर्थकर सहित ३० प्रकृतिक वन्धस्थान मनुष्यगति प्रायोग्य है ।
तिर्यंचगतिमें छह बम्धस्थान हैं-२३, २५, २६, २८, २६ और ३० । इनका विशेप खुलासा पहलेके समान यहाँ भी करना चाहिये। किन्तु केवल यहाँ पर २९ प्रकृतिक बन्धस्थान तीर्थंकर सहित और ३० प्रकृतिक बन्धस्थान आहारकद्विक सहित नहीं कहना चाहिये क्योकि तिर्यंचोंके तीर्थकर और आहारकद्विक का बन्ध नहीं होता।
मनुष्यगतिके आठ बन्धस्थान हैं-२३, २५, २६, २८, २६, ३०, ३१ और १ । सो इनका भी विशेप खुलासा पहलेके समान यहाँ भी करना चाहिये।
देवगतिमै चार वन्धस्थान है-२५, २६, २६ और ३० । इनमेंसे २५ प्रकृतिक वन्धस्थान पर्याप्त, वादर और प्रत्येकके साथ