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गुणस्थानो नामकर्मके संवेधभंग |
२६५ उदयस्थान और सत्त्वस्थान ही हैं। तदनुसार उपशान्तमोहमें एक तीस प्रकृतिक उदयस्थान और ६३, ६२, ८६ और ये चार सत्त्वस्थान होते हैं ।
क्षीणमोहमें एक ३० प्रकृतिक उदयस्थान और ८०, ७६, ७६ और ७५ ये चार सत्त्वस्थान होते हैं । यहा उदयस्थानमें इतनी विशेषता है कि यदि सामान्य जीव क्षपक श्रेणि पर आरोहण करता है तो उसके मतान्तरसे जो ७२ भग बतला आये हैं वे न प्राप्त होकर २४ भग ही प्राप्त होते है, क्योकि इसके एक वर्षभनाराच सहननका ही उदय होता है । यही बात क्षपकणिके पिछले अन्य गुणस्थानोंमें भी जानना चाहिये । तथा यदि तीर्थकर की मत्तावाला होता है तो उसके प्रशस्त प्रकृतियोंका ही सर्वत्र उदय रहता है इसलिये एक भंग होता है । इसी प्रकार सत्ता - स्थानोमे भी कुछ विशेषता है । बात यह है कि यदि तीर्थंकर प्रकृतिकी सत्तावाला जीव होता है तो उसके ८० और ७६की सत्ता रहती है और इतर जीव होता है तो उसके ७६ और ७५ की सत्ता रहती है । यही बात यथासम्भव सर्वत्र जानना चाहिये । यद्यपि पहले जो कथन कर आये हैं उससे ये सब नियम फलित हो जाते हैं । फिर भी विशेष जानकारी के ख्यालसे यहां इनका विशेषरूपसे उल्लेख किया है ।
सयोगिकेवलीके उदयस्थान आठ हैं - २०, २१, २६, २७, २८, २६, ३० और ३१ । तथा सत्तास्थान चार हैं- ८०, ७६, ७६ और ७५ । सो इनका और इनके संवेधका विचार पहले कर ये हैं वहां से जान लेना चाहिये ।