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२८६ सप्ततिकाप्रकरण " अव देशविरतमें बन्ध, उदय और सत्तास्थानोका विचार करते हैं-देशविरतमें वन्धस्थान दो हैं-२१ और २६ । इनमेंसे २८ प्रकृतिक बन्धस्थान तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्योंके होता है। इतना विशेष है कि इस गुणस्थानमें देवगति प्रायोग्य प्रकतियोका हो वन्ध होता है। तथा इस स्थानके ८ भंग होते हैं। इसमे तीर्थकर प्रकृतिके मिला देने पर २६ प्रकृतिक बन्धस्थान होता है जो मनुष्योके ही होता है, क्योकि तियंचोके तीर्थकर प्रकृतिका वन्ध नहीं होता। इस स्थान के भी आठ भग होते हैं। ___यहाँ उदयस्थान ६ होते हैं-२५, २७, २८, २९, ३० और ३१ । इनमेसे प्रारम्भके ४ उदयस्थान विक्रिया करनेवाले विर्यच और मनुष्योके होते हैं। मनुष्योके इन चारो उदयस्थानोमें एक एक ही भग होता है। किन्तु तिर्यंचोंके प्रारम्भके दो उदयस्थानो का एक एक भग होता है और अन्तिम दो उदयस्थानोके दो दो भग होते है। ३० प्रकृतिक उदयस्थान स्वभावस्थ तिथंच और मनुष्योके और विक्रिया करनेवाले तिर्यंचोके होता है । सो यहाँ प्रारम्भके दो में से प्रत्येकके १४४ भग होते है । जो छह सहनन छह संस्थान, सुस्वर-दुःस्वर और प्रशस्त-अप्रस्त विहायोगतिके विकल्पसे प्राप्त होते हैं तथा अन्तिमका १भग होता है । इस प्रकार ३० प्रकृतिक उदयस्थानके कुल २८८ भग हाते है । तथा ३१ प्रकृतिक उदयस्थान तिर्यंचोके ही होता है। यहाँ भी १४४ भग होते हैं। इस प्रकार देशविरतमें सब उदयस्थानोके कुल ४४३ भग हाते है।
सत्तास्थान यहाँ चार होते हैं-९३, ६२, ८६ और ८८ । जो तीर्थकर और आहारक चतुष्कका बन्ध करके दशविरत हो जाता है उसके ९३ की सत्ता होती है। तथा शेष का विचार सुगम है। इस प्रकार देशविरतमे बन्ध, उदय और सत्तास्थानो का विचार किया।